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[ उद्यान का एक भाग ]
देवसेना-- हृदय की कोमल कल्पना ! सो जा । जीवन में जिसकी संभावना नहीं, जिसे द्वार पर आये हुए लौटा दिया था, उसके लिये पुकार मचाना क्या तेरे लिये कोई अच्छी बात है ? आज जीवन के भावी सुख, आशा और आकांक्षा–सबसे मैं बिदा लेती हूँ !
आह ! वेदना मिली विदाई
मैने भ्रम-वश जीवन-सञ्चित
मधुकरियों की भीख लुटाई
छलछल थे संध्या के श्रमकण
आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण
मेरी यात्रा पर लेती थी--
नीरवता अनन्त अँगड़ाई
श्रमित स्वप्न की मधुमाया में
गहन-विपिन की तरु-छाया में
पथिक उनीदी श्रुति में किसने--
यह विहाग की तान उठाई
लगी सतृष्ण दीठ थी सबकी
रही बचाये फिरती कबकी
मेरी आशा आह ! बावली
तूने खो दी सकल कमाई
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