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पंचम अंक
 


कता है। तुम्हारा यह प्रायश्चित्त नहीं। रणभूमि में प्राण देकर जननी जन्भूमि का उपकार करो। भटार्क! यदि कोई साथी न मिला तो साम्राज्य के लिये नहीं--जन्मभूमि के उद्धार के लिये मैं अकेला युद्ध करूँगा और तुम्हारी प्रतिज्ञा पूरी होगी, पुरगुप्त को सिंहासन देकर मैं वानप्रस्थ-आश्रम ग्रहण करूँगा। आत्म-हत्या के लिये जो अस्त्र तुमने ग्रहण किया है, उसे शत्रु के लिये सुरक्षित रक्खो।

भटार्क-- (स्कन्द के सामने घुटने टेककर) "श्री स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य की जय हो!” जो आज्ञा होगी, वही करूँगा।

स्कन्द०-- पहिले इस शव का प्रबंध होना चाहिये (प्रस्थान)

भटार्क-- (स्वगत) इस घृणित शव का अग्नि-संस्कार करना ठीक नहीं, लाओ इसे यहीं गाड़ दूँ!

(भूमि खोदते समय एक भयानक शब्द के साथ रत्नगृह का प्रकट होना और भटार्क का प्रसन्न होकर पुकारना; स्कन्दगुप्त का आकर रत्नगृह देखना)

स्कन्द०-- भटार्क! यह तुम्हारा है।

भटार्क-- हाँ सम्राट्! यह हमारा है, इसीलिये देश का है। आज से मैं सेना-संकलन में लगूँगा।

स्कन्द॰-- वह दूर पर बड़ी भीड़ हो रही है स्तूप के पास। भटार्क-- नागरिकों का उत्सव है। (रत्नगृह बन्द करके) चलिये, देखूँ।

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