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सौ अजान एक सुजान


पन से बूढ़े लोग भी खुश रहते थे, और कोई इसे बुरा न कहता था। यह बात तो कभी इसके मन में आती ही न थी कि ऊँचे पद से और रुपए के कारण मनुष्य की प्रतिमा और इज्ज़त में कुछ अंतर आ सकता है। इसलिये जहाँ कहीं कुछ चुटकी लेने का अवसर मिलता था, यह विना कुछ बोले नही रहता था. चाहे वह आदमी कौड़ी-कौड़ी का मुहताज हो या करोड़पती क्यों न हो। संसार में यदि किसी से दबता था, या किसी की बुजुर्गी करता था, तो केवल चंद्रशेखर की। पंचानन के मन में चंद्रशेखर का ऐसा रोब जमा हुआ था, जिसे ख्याल कर अचरज होता था। यद्यपि चदू से भी कभी- कभी यह दिल्लगी छेड़ बैठता था. किंतु दो-एक गंभीर विचार की भावना कभी को कुछ देर के लिये इसके मन में अवकाश पाती थी, तो चंदू ही के बार-बार की नसीहत और उपदेश से ! मसखरापन का बर्ताव यह साधारण रीति पर सबके साथ रखता था, कितु मन में सोचता था कि हम बड़े गौरव के साथ लोगों से बर्तते हैं । इस तरह यह लोगों के बीच अपने को खिलौना बनाए था सही, पर सबों का सेवक और सबसे छोटा अपने को मानता था । सर्व-साधारण में यह परोपकारी विदित था, और अपने इख्तियार-भर जो किसी का कुछ भला हो सके, तो उससे मुॅह नहीं मोड़ता था। घमंड का इसमें कहीं लेश भी न था, सूरत भी भगवान ने इसकी ऐसी गढ़ी थी कि इसे देख हसी आती थी। बढ़ी