और दरवाजे का फाटक खुलवाय पुलिंदा दे चला गया था। हमारे पढ़नेवालों को अवश्य इस बात के जानने की रुचि हुई होगी कि यह कागज का पुलिदा क्या था, और क्यों ऐसा ताबड़तोड़ मॅगाया गया।
हम ऊपर कह आए हैं, सेठ हीराचंद का अनंतपुर मे एक बहुत पुराना घराना था । हीराचंद से पॉच पुश्त पहले इसके पुरखों में से एक कोई मानिकचंद नाम का, घर से पॉच कोस पर अपने ही नाम का एक गॉत्र बसाय. बाग, बागीचा, कुऑ, तालाब, रमने इत्यादि कई एक रमणीक सजावटों से इस स्थान को अत्यंत मन रमानेवाला कर आप वहीं जाय रहने भी लगा। उपरांत इसके कई एक लड़के-लड़कियॉ, पोते-परपोते हुए, और यह सब भॉति रॅजा- पुजा होकर संसार में भाग्यवानी की सीमा को पहुॅच गया था; बल्कि बीच में हीराचंद के घराने की बड़ी अवतरी आ गई थी, यह तो हीराचंद ही ऐसा भाग्यवान् पुरुष हुआ कि पहले से भी अधिक इस घराने को चमका दिया । मानिकपुरवाले सेठों का तो कोई नाम भी न जानता था, पर हीराचंद का विमल यश चहूँ ओर छाया था। जिस समय का हाल मैं लिखता हूँ, उस समय मानिक- चंद के घराने में बची-बचाई पुरानी दौलत तो थोड़ी- बहुत रह गई थी, पर उसका सुख विलसनेवाला कोई न रहा । ७० वर्ष का एक बुड्ढा बच रहा ; जैसे किसी हरे-भरे