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बारहवाॕ प्रस्ताव

का खौफ हमेशा दामनगीर रहेगा। पहले वर्ष-छः महीने भीतर-भीतर उस जिले का हाल दरियाफ्त करेगे कि यहाँ कौन- कौन रईस हैं, किस हैसियत के मुकदमे लड़नेवाले हैं, क्या उनकी चाल चलन है, किस तरह की उनको सोहबत है, क्या काम उनके यहाँ होता है, इत्यादि-इत्यादि। किसी छोटे वकील को अपने इजलास में बड़ा रखना भी एक ढंग ऐसे लोगों का रहता है। अस्तु। हमारे उक्त मुसिफ साहब यह सब भरपूर समझ-बूझ गए थे, और अब इस समय डेढ़ वर्ष के ऊपर यहाँ जमे इन्हें हो भी गया था। उनके जिले-भर में जो जहाँ जैसे छोटे-बड़े ताल्लुकेदार, रईस तथा सेठ, साहूकार, महाजन थे, सब इनकी निगाह पर चढ़ गए थे। उन्हीं में ये दोनो बाबुओं का भी सब कच्चा हाल दरियाफ्त किए हुए यही ताक में थे कि किसी तरह कोई मुकद्दमा इन बाबुओं का दायर हो। दो-एक मुलाकाते भी उनकी इनसे हो चुकी थीं, तोहफे और नजर-भेंट की चीजे तो अक्सर आया ही करती थीं। नंदू, जिसे बाबुओं ने थोड़े दिनों से अपना मुख्ताराम कर रक्खा था, मुंसिफ साहब तक बाबुओं की रसाई करा देने का एक जरिया था। मसल है "चोरै चोर मौसियायत भाई"। इधर ये तो कुछ अपनी गौं में थे कि यह बड़े आला रईस के घर का गुर्गा है, इसके जरिए मनमाना माल कट सकता है, उधर नंदू अपनी ही घात में था कि ऐयाशी का चस्का तो इसे