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सौ अजान और एक सुजान

यह ऐसे ही लोगों का कौल है कि ऐसा बलद इख्तियार हासिल कर जिसने दियानतदारी की, और फूॅक-फूॅक पॉव रखता हुआ कोरे-का-कोरा बना रहा, उसे चुल्लू-भर पानी में डूब मरना चाहिए। ऐसे लोग इसकी दो वजह कहते हैं–एक तो सियाह-सुफैदी का कुल इख्तियार हाथ मे आना, दूसरे बमुकाबिले अँगरेजों के, जो छोटे-से-छोटे ओहदे पर डेढ़ हज़ार-दो हज़ार महीने में तनख्वाह सहज में फटकारा करते हैं, हम जो जन्म-भर नौकरी कर लियाकत का जौहर दिखलाते हुए बराबर नेक नाम रह बुड्ढे होते-होते पॉच सौ-छ सौ महीने में पाने लायक समझे गए, तो इतने में होता ही क्या है, इतना तो हमारे शराब-कवाब का खर्च है। ऐसे लोगों की, जो अपने गुनों में सब तरह भरे-पूरे हैं, किसी नए जिले में पहुंचते ही पहली बात सरिश्ते की जॉच और मातहतों पर तंदीही करना है। जिन्हें अपने काम में बर्क और जॉच की कसौटी में कसने पर खरे और बेलौस पाया, उन्हें तबदील या मौकूफ़ करने की फिकिर मे लगे। यह सब इसलिये करते हैं, जिसमें ऊपर के हाकिमों को सबूत हो जाय कि यह दफ्तर की सफाई और अपने सरिश्ते का काम दुरुस्त रखने में बड़ा निपुण है। निश्चय जानिए यह सब उसी से बन पड़ेगा, जो कलम का जोरावर, जबान का तर्रार और हिम्मत का दबंग हो। जो ऐसा नहीं है, बोदा और लियाकत में खाम है, वह पाकेट गरम करने में भी सदा डरा करेगा, उसे चालाकी के खुल जाने