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सौ अजान और एक सुजान

यकीन जानिए: कल की रात हम लोगों की ऐसे तरद्ददुद में बीती कि जन्म-भर याद रहेगा। अच्छा, तो बंदगी, अब रुखसत होता हूँ। दोपहर तक फिर आऊँगा, और हकीम साहब को भी लेता आऊँगा।"

इसकी बातों का बाबू पर कुछ ऐसा असर पड़ा कि उसी दम से इनकी तबियत में चंदू की ओर से घिन हो गई, और जो कुछ क्रम इसमें सुधराहट और भलाई के आ चले थे, सब बिदा होने लगे। इन धूर्त चौपटों की बन पड़ी। बसंता भी इस समय तक जेल में छ महीने काट आ मिला। इन बाबुओं को ऐगुन की खान कर उन्हें अपना शिकार बनाने को पूरा अखाड़ा जमा हो गया। सच है-"संगत ही गुन ऊपजै, संगत ही गुन जाय ।"


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ग्यारहवाँ प्रस्ताच ।

अवलम्बनाय दिनभर्तु रभून पतिप्यतः कर-

सहस्नमपि । ( भारवि )

अनंतपुर की घनी बस्ती के बीचोबीच लंबे दो खंड का एक पक्का मकान था, यद्यपि यह मकान बड़ा लंबा-चौड़ा तो न था, पर चारो ओर से हवादार और ऐसे क्लिता का बना था कि रहनेवाले कोसिब ऋतु में आराम पहुंच सकता था। इस मकान के आगे के हिस्से में ऊँची पाटन का एक वसीह


  • नीचे को गिरते हुए सूर्य की हजार किरणें भी उसको सँभाल न सकी।