पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/४२

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सातवाॅ प्रस्ताव

तक बचे रहेंगे ? यही लच्छन हैं, तो एक दिन बढ़ई का हाथ गया दाखिल है । बकरे की मा कब तक खैर मनावेगी ? हा! सोने का घर खाक में मिला जाता है । क्या कहते हो, 'बड़े सेठ बाबुओं को तो चंदू के हाथ में सौंप गए थे ।' हॉ-हॉ, सौप तो गए थे, पर कटकरूप दुष्टों के रहते जब उस बेचारे की कुछ चलने पाती ? लाचार हो वह भी छोड़कर चला गया। चंदू-से गुनी, सुशील, भलेमानुस की तो जहाँ तक तारीफ की जाय, सब कम है। उसके सुयश की सुगधि के सामने बूढ़े बाबा मडन महाराज को हम लोग भूल ही गए थे। धिक । नराधम! पापी! कर्म चांडाल! तेरा इतना साहस ! हा-हा-हा! बचा पर खब पड़ी; स्त्रियों का भेख धर कैसा बइयरबानियों में जा मिला था । पूजा भी हुई, और अब पुलिस के चंगुल में पड़ गया है। वे लोग सब तके हई हैं, बसंतवा से भरपूर दाँव लेगे। सच है, बुरे काम का बुरा अंजाम । दोनो बाबू भी बसंता की इस दुष्ट अभिसंधि में अवश्य थे । कुशल हुई, जो इन्हें भी इसमें फंसते देख एक आदमी इनको उस भीड़ से किसी तरह अलग कर गाड़ी पर चढ़ाय ले भागा। यह आदमी कौन था, मैं अच्छी तरह न पहचान सका ; पर मुझे दूर से चदू का-सा चेहरा उसका मालूम हुआ। जो हो, अब हम भी घर जाय।"

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