कर रही है। खेलवाड़ी बालक, जिन्हें इस दोपहर में भी
खेलने से विश्राम नहीं है, गप्प हॉकते हुए-दूसरे-दूसरे खेल
का बदोबस्त कर रहे हैं । बॅगलों पर साहब लोगों के पदाघात
का रसिक पंखाकुली, अपने प्रभु के पादपद्मको मौनो बारंबार
झुक-झुक प्रणाम करता-सा ऊँघ रहा है; पर पंखे की डोसे
हाथ से नहीं छोड़ता । सहिष्णुता और स्वामिभक्ति में बढ़
सौहार्द इसी का नाम है।
अस्तु, ऐसे समय रंगीन कपड़ा सिर पर डाले अठखेली
चाल से एक नौजवान आता हुआ दूर से देख पड़ा। धीमे
स्वर से कुछ गाता हुआ चला आ रहा था । ज्यों-ज्यों पास
आता गया, इसकी पूरी-पूरी पहचान होती गई। पहले इसके
कि हम इसका कुछ परिचय आपको दें, यह, निश्चय जान
रखिए कि चदू-सरीखे बुद्धिमानों के सदुपदेश के अकुर
का बीजमार करनेवाला अकालजलदोदय के समान यही
मनुष्य था । यद्यपि अनतपुर मे सेठ के घराने से इस कदर्य का
पुराना संबंध था, कितु सेठ हीराचंद के जीते-जी इसका
केवल आना-जाना-मात्र था। इसके घिनौने काम और दुरा
चार से हीराचंद सदा घिन रखते थे । इस कारण जब-तब
इसे ऐसी फटकार बतलाते थे कि सेठ के घराने से अत्यंत
घिष्ट-पिष्ट रखने की इसकी हिम्मत न होती थी। पाठकजन
यह सेठजी के पूज्य पुरोहित के घराने का था। नाम इसका
वसंतराम था, पर सब लोग दसे बसता-बसंता कहा करते