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सौ अजान और एक सुजान



जंगम जगत् की इस मौन दशा में कभी-कभी पुराने खँडहरों पर बैठी चील का भयंकर किकियाना जो कानों को व्यथा पहुँचा रहा है, सो मानो बीच-बीच उस उच्चाटन मंत्र की सुमिरनी पूरी होने का पता देता है। प्रत्येक गृहस्थ के यहाँ घर-घर सब लोग भोजन के उपरांत विश्राम-सुख का अनुभव कर रहे हैं, नींद आ जाने पर पंखा हाथ से छुट गया है, खर्राटे भरने लगे हैं । स्त्रियाँ गृहस्थी के काम-काज से छट: कारा पाय दुधमुंहे बालकों को खेला रही हैं। कोई-कोई बालक-बालिकाओं को इकट्ठ कर उनके रिझाने की कहानियाँ कह रही हैं । कोई-कोई रूपगर्विता बार-बार दर्पन में मुख देख-देख वेश-भूषा की सजावट कर रही हैं । कोई-कोई बड़ी जंगरैतिन गृहस्थी का सब काम शेष होते देख जेठ के दीर्घ दोपहर की ऊब दूर करने को सूप की फटकार से अपने परोसी के विश्राम में विक्षेप डाल रही हैं। हवा के साथ लड़नेवाली कोई कर्कशा न लड़ेगी, तो खाया हुआ अन्न कैसे पचेगा, यह सोच अपने परोसियों पर बाण-से तीखे और रूखे वचन की वर्षा कर रही है । कोई सरला सुशीला घर की पुरखिन अपनी बहू-बेटियों को एकत्र कर उन्हें अच्छे-अच्छे उपदेश दे रही है। कोई पढ़ी-लिखी एकांव में बैठी तुलसी-कृत रामा- यण या सूर के पदों का अभ्यास कर रही है । कोई कोम लांगी अपनी प्यारी सखी को कसीदा या कारपेट सिखाती हुई परस्पर प्रेमालाप के द्वारा मध्याह्न के निकम्मे घंटों को सफल