में पैठते ही नव युवा और युवतियो के अग-प्रत्यंग में
सलोनापन भीजने लगता है।तन में,मन में, नैन में नई-नई उमंगें जगह करती जाती हैं;एक अनिर्वचनीय शोभा का प्रसार होने लगता है। प्रिय पाठक,नई उमर की मनोहर पुष्प-वाटिका की कुछ अंकथ कहानी है,इसका ढंग ही कुछ निराला है। हमने बसत की सुखद अज्मा के संचार की सूचना पहले आपको दे दी है।नई-नई कलियो को फूटकर विकास पाने का स्वच्छंद अवसर इसी समय मिलता है,अत्यंत कटीले और मुरझाए हुए पेड़,जिनकी ओर बारा का माली कभी झॉकता भी नहीं,एक साथ हरे-भरे हो लहलहा उठते हैं।तव उन नए पौधों का क्या कहना,जो नित्य दूध और दाख-रस से सींचकर बढ़ाए गए हैं।इस समय,जिसका हमारे
यहाँ के कवियों ने वयस्संधि नाम रक्खा है,जिसके वर्णन में कालिदास,भवभूति,श्रीहर्ष,मतिराम,बिहारी आदि अपनी-अपनी कविता का सर्वस्व लुटाए बैठे हैं,आज हम भी उसी के गुन-ऐगुन दिखाने के अवसर की प्रार्थना आपसे करते है।हमारे पाठकों में जो सब ओर से लहराते हुए सिंधु-समान इस चढ़ती उमर के उफान को,जिसे ऊपर के दोहे मे कवि ने नै वै कहा है खेकर पार हो गए है.और अब शांति धरे मननशील महामुनि बन बैठे है,वे जान सकते हैं कि यह चढ़ती जवानी क्या बला है,और कैसे-कैसे ढंग पर आदमियों को दुलकाए फिरती है। यह नए-नए हौसलो की
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चौथा प्रस्ताव