धनाधिए राजराज कुबेर का-सा असंख्य धन और देव-राज इद्र के-से अनुपम ऐश्वर्य के स्वतंत्र अधिकारी अपने'दो पौत्रों को छोड़ सेठ हीराचद सरधाम सिधार गए। सेठ के प्राण-धन-समान प्यारे पडित शिरोमणि ने भी इनके वियोग की आग के दाह में प्राह भरते हुए अपने जीवन को झुल-माला अनुचित मान और सेठ-सरीखे धर्मात्मा को वहाँ भी धर्मोपदेश से सनाथ रखने को इनका साथ दे दिया।'राजा'और'बहादुर'का-सा सिर्फ दुलार में पुकारने का नहीं,वरन्वा वास्तक में अपनी बेइंतिहा विभव की निश्चय दिलानेवाली दुहरी मुहर के समान अपने दो पौत्रों का नाम सेठ ने ऋद्धि-नाथ और निधिनाथ रक्खा था। इनमें ऋद्धिनाथ बड़ा था और निधिनाथ छोटा। करोड़ों का धन अपने अधिकार में पाय अब इन दोनों के नाम की पूरी-पूरी सार्थकता हो गई। शील- स्वभाव और आकृति मे दोनों की ऐसी समता पाई जाती थी, मानो वे हीराचद के सुकृत-सागर की सीप के एक-सी आभावाले छोटे-बड़े दो मोती हैं. या उसके पुण्य की दो पताकाएँ हैं,या वंश-वृद्धि करनेवाले बीजांकुर-न्याय के दो
जवानी,धन-दौलत,प्रभुताई और अज्ञानता,इनमें से एक-एक अनर्थ ले करनेवाले होते हैं,फिर जहाँ ये चारो इकट्ठे हो जाय, उसका क्या कहना।