पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/१३६

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टिप्पणी-सहित कठिन-शब्दार्थ -सूची पंद्रहवाँ प्रस्ताव अटकटारा-(सं० उष्ट्रकंट) | रचना, जो अनजान में उसी एक कटीली झाड़ी, जिसे ऊँट प्रकार हो जाय, जिस प्रकार बडे चाव से खाता है। घुनों के खाते-खाते लकडी में नीचैर्गच्छति ...."चक्रनेमि- - ‘अक्षरों की तरह से बहुत-से क्रमेण-मनुष्य की दशा चिह्न या लकीरें बन जाती हैं। पहिए के चाके के समान कभी इस न्याय का प्रयोग ऐसे ऊपर कभी नीचे को जाती है, स्थलों पर करते हैं, जहाँ किसी अर्थात् कभी अच्छी दशा के द्वारा ऐसा अाकस्मिक कार्य होती है, और कभी खराब । हो जाता है, जो उसे ज्ञात व • ग्रीष्म-संताप-तापित-गर्मी की | अभीष्ट न रहा हो। - ताप से जली हुई। "दिन में हो जाता है"- वसुधा-पृथ्वी। उपमा अलं। नववारिद-नए बादल । सम-विषम-भाव-ऊबढ़- वन-उपवन-बाग़-बगीचे । खाबड़ स्वरूप या दशा। वदान्य-उदार । तत्त्वदर्शी-ब्रह्म का जानने- कथानक-उपन्यास, किस्सा।। वाला, ब्रह्मज्ञानी। "नदी-नाले 'बह निकले" "पृथ्वी पर... जाता ही उपमा अलं। रहा"-उपमा अलं०। कलध्वनि-मीठा शब्द । शगल-काम। "विमल - जल"."लायक नववारिद - समागम-नए हुए"-उपमा श्रलं। वादल का श्रागमन । । "सूर्य-चंद्रमा..... पुजवाने भेकमंडली-मेंढकों का समूह। लगे"-उपमा अलं। वाचाट-मुखर, वकवादी, घुणाक्षर-न्याय-ऐसी कृति या | गपोदिया।