सन्नहटा—नीरव, शब्दाभाव। तिग्मांशु—(तिग्म=तेज़। अंशु=किरण) सूर्य। तीखी—(सं॰ तीक्ष्ण) तेज़। खरतर—तेज़। ब्रह्मांड—जगत्, संसार। तचा—तप्त। लोहपिंड—लोहे का गोला। अनुहार—समानता। स्थावर—अचल, स्थिर, जो चले नहीं, जैसे पेड़ इत्यादि। जंगम—चलनेवाला, चरिष्णु, जैसे मनुष्य, पशु इत्यादि। यावत्—जितने। त्वगिंद्रिय—स्पर्शेंद्रिय, जिस इंद्रिय से स्पर्श का ज्ञान हो।
शीतस्पर्शवत्याप—कणाद मुनि ने पाँचों तत्वों में से जल तत्व की परिभाषा में लिखा है कि जल वह तत्व है, जो छूने में शीतल हो। दंडायमान—लंबा। ललाटंतप—ललाट (खोपड़ी) को तपानेवाला, अत्यंत गरम, चैलाफाढ़ घाम। चडांशु—(चंड=तेज, गरम। अंशु-किरण) सूर्य। उच्चाटन—तंत्र के छै अभिचारी या प्रयोगों में से एक; नाश। रूपगर्विता—अपने सुंदरापे के घमंड में भरी हुई।