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तेईसवाँ प्रस्ताव

का माल-मताल अपने कब्जे में लाने की जो अभिसंधि की थी, उससे भी अपने को अलग कर जो कुछ काग़ज उस बूढ़े सेठ का नंदू संदूक से उड़ा लाया था, और जो कुछ जायदाद थी, सब मिट्ठू को बुलाय सिपुर्द कर चंदू को उसका मुखतार कर दिया, और ये दोनों बाबू बड़े सेठ हीराचंद के चलाए पथ पर चलने लगे । परिणाम में कुछ दिन उपरांत हीराचंद के घराने की प्रतिष्ठा फिर वैसी ही हो गई । पाठक, देखिए, सौ अजान में एक सुजान कैसा गुनकारी हुआ कि सब अजानों को फिर राह पर अंत को लाया ही, नहीं तो कौन आशा थी कि ये दोनों सेठ के लड़के कभी कुढंग पर आ सुधरेगे। दूसरे यह कि जो सुकृती हैं, उनके सुकृत का फल अवश्यमेव औलाद पर आता है। हीराचंद-से सुकृती की औलाद दूषित-चरित की हों, यह अचरज था।

अंत को हम अपने पढ़नेवालों को सूचित करते हैं कि आप लोगों में यदि कोई अबोध और अजान हों, तो हमारे इस उपन्यास को पढ़ आशा करते हैं सुजान बने। इस किस्से के अजानों को सुजान करने को चंदू था, और आप लोगो को हमारा यह उपन्यास होगा।

॥इति॥