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सौ अजान और एक सुजान

माने हुए था, लखनऊ जाना नागवार हुआ, किंतु चंदू के उद्देश्य से उसे ऐसा करना ही पड़ा। दूसरे यह कि चंदू ने बाबू का कचहरी में जाना अनुचित और सेठ हीराचंद की हतक समझ इसे बाबुओं की ओर से मुखतार मुक़र्रर किया था।

मुक़दमा शुरू होने पर नंदू.बुलाया गया। यह कॉपता-काँपता दो पुलीस के पहरे में जज के सामने हाज़िर हुआ। जज ने पूछा–"तुम अपनी सफाई इस मुकदमे में क्या देते हो ?"

नंदू–हुजूर, यह सब पुलीस की कार्रवाई है। मेरा इसमें कोई कुसूर नहीं; और हो भी, तो यह हरकत मैने बाबू के कहने से की।

पंचानन–नंदू बाबू, तो क्या आप इसमें बिलकुल बेकुसूर हैं? उस दिन वारंट आपके नाम आया था कि बाबू के नाम ? आप चालाकी से न चूकिएगा। सच है, अंधड़ में जब कोई बड़ा पेड़ उखड़ने लगता है, तो अपने साथ दो-एक छोटे-मोटे वृक्षों को भी ले डालता है, और आपने तो ऐसे-ऐसे कई एक बाबुओं को हलाल कर डाला। पहले आपने कहा-'हम बिल- कुल बेकुसूर हैं।" पीछे से कहते हो–"किया भी, तो बाबुओं के कहने से।" इससे साफ ज़ाहिर है कि आप अपने साथ बाबुओं को भी फँसाना चाहते हैं।

जज–(पुलीस से ) तुम दोनों इसके बारे में क्या जानते हो?

पहला पुलीस–हुजूर. इसने जाल किया है, और हमेशा