पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/११६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११५
बीसवाँ प्रस्ताव

कैसी पेचिश उठा करती है, इससे मैंने यही बेहतर समझा कि इस आदत से बाज रहूँ। और, फिर वह प्रेम ही क्या,जब इस प्रेम के बारा के माली को प्रेम-पुष्प की सुगंधित कली हृदय के आलबाल में खिल परस्पर एक दूसरे को प्रमुदित न कर सकी।

चंदू–सच है, यदि उस आलवाल के चारों ओर कटीले पौधे न उग आए हों, इसलिये जब तक उन कटीले पौधों को उखाड़ न डालेगा, तब तक उस माली की सराहना ही क्या?

पंचानन–खैर, आप भी इस दुर्नयवी पेच में आ फंसे। "वाद मुद्दत के फॅसा है यह पुराना चंडूल !” (हॅसता है)

चंदू–मित्र. अब इस समय ठठोलबाज़ी रहने दो, कोई ऐसी बात सोचो, जिसमें सेठ के घराने की पत रह जाय। हम लोग निरे पोथी बॉचनेवाले अदालत की कार्रवाइयॉ और क़ानून के पेचों को क्या समझे। तुम अलबत्ता इसमें परिपक्व-बुद्धि हो। कोई ऐसी बात सोचके निकालो कि इन दोनों बावुओं का निस्तार हो, नंदू और बुद्धदास को अपने किए का फल मिले।

पंचानन-जी हॉ, बावुओं ने तो समझा था कि बढ़के हाथ मारा है। रकम इतनी हाथ लगती है कि कुछ दिन के लिये चैन है। अच्छा, तो मैं अब इस बात की खोज करुँगा कि वह जाली दस्तावेज किस ढग पर लिखा गया है, और वावुओं की साजिश उसमे कहाँ तक है। तो अब इस जून तो आप पधारे. हम इसकी फिकिर करेगे, पर पुलीस के कुत्तों का मुॅह मार पिंड छुटवाना वाजिब है ।