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सौ अजान और एक सुजान

नदू–जी हॉ, माफ कीजिए, आपकी बात कटती है।अदा- लत में इंसाफ होता है, यह आप नाहक कह रहे हैं।उलटे का सीधा, सीधे का उलटा वहॉ हमेशा होता है। इंसाफ तो ऐसा ही कभी साजनादिर होता है। दूसरे यह कि अदालत तो रुपए की है। अदालत ही पर क्या, रुपए से क्या नहीं होता। खैर, हुजूर से मै तकरीर नहीं किया चाहता, आप जो कहें, मै उसे अंगीकार किए लेता हूँ।

दारोगा–(मन में ) बुराइयों के करने में इसका जहबा खुला है। अदालत ऐसे-ही-ऐसों की करतूत से बिगड़ती जाती है। अक्सर रुपए के जोर से यह अब तक बचता चला आया, , इसी से इसके दिमाग में यह बात समाई हुई है कि अदालत रुपए की है। खैर, तुम बचा हमी से ठीक लगोगे। (प्रकट) "मुझे यकीन कामिल हो गया कि तुम जरूर इसमें कुसूरवार हो, वह कोई दूसरा खलीफ मामला रहा होगा, जब तुम रुपए के खर्च से बच गए । जानते हो, यह कैसा टेढ़ा मुकदमा है; जनाब ये जाल के मुकद्दमे हैं, इसमें चौदह और डा- मिलं की सजाएँ हैं। ऐसे-ऐसे गंदे ख्यालों को दूर रखिए कि अदालत मे उलटे का सीधा और सीधे का उलटा होता है । अदालत इंसाफ के लिये है । ऐसे लोगों ने, जैसे आप हैं. अलबत्ता अदालत को बदनाम कर रक्खा है।"

चौदह और डामिल का नाम सुन इसका चेहरा जद