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घोघाबापा नंगी तलवार हाथ में लेकर एकाएक उठ खड़े हुए। मसऊद ने भी तलवार खींच ली। सामन्त उछलकर उसकी गर्दन पर जा पड़ा। नन्दिदत्त ने विनय से कहा, “महाराज! दूत अवध्य है।" "तो उसे कहो कि यह लात ही मेरा उत्तर है।" उन्होंने कसकर एक लात उस हीरों से भरे थाल में लगाई और वहाँ से चल दिए। राजगढ़ के उस कक्ष में वे हीरे बिखर कर वहाँ की धूल को प्रदीप्त करने लगे। मसऊद के मुख पर उसके शरीर का समूचा रक्त भर गया। नन्दिदत्त ने कहा, “आओ, मैं तुम्हें सुरक्षित गढ़ से बाहर पहुँचा दूं। पुत्र सामन्त, राह छोड़ दो।" आगे-आगे वृद्ध ब्राह्मण नन्दिदत्त, उनके पीछे उतरा चेहरा लिए हज्जाम तिलक और सबके पीछे क्रोध से थर-थर काँपता हुआ सालार मसऊद गढ़ से बाहर जा रहे थे।