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महानद के तट पर सिंधुनद भारतीय सीमा पर महानदी है। इसका विस्तार देखकर इसे नदी न कहकर नद कहते हैं। यह नद पर्वतेश्वर हिमालय के अंचल से निकलकर अरब समुद्र में गिरता है। बारहों मास यह नद अथाह जल से परिपूर्ण रहता है। उसका तीव्र जल-प्रवाह अगाध और पाट मीलों तक का है। इस महानद को पार उतरकर ही भारत भूमि पर चरण रखना पड़ता है। सुलतान महमूद ने इस कठिन कार्य की भी सब व्यवस्था ठीक कर रखी थी। अमीर ने सिन्धु के उस पार दो दिन विश्राम किया। तीसरे दिन सिन्धुनद पार उतरने की व्यवस्था की। प्रत्येक पूर्णिमा को नद में ज्वार आता है। तब नद का जल ऊपर खारा और नीचे मीठा होता है। इस समय महानद समुद्र की भाँति गर्जना करता है और उसमें पर्वत के समान बड़ी-बड़ी लहरें उठती हैं। अमीर ने तट से कुछ हटकर कुछ ऊँची जगह पर अपनी छावनी डाली थी। छावनी का प्रबन्ध अत्युत्तम था। घुड़सवारों की टुकड़ियाँ उसके चारों ओर घूम-फिरकर रात-दिन पहरा देती थीं। पहरे का यह दायित्व एक दरबारी सरदार के सुपुर्द था। बीच में अमीर का लाल रंग का तम्बू था, जिसे चारों ओर कनातों से घेर दिया गया था। तीसरे दिन भोर होते ही नद पार करने की हलचल प्रारम्भ हो गई। कछुए और बेड़े नद में डाल दिए गए। बोझा ढोने वाले ऊँट और भारवाही पलटन पार उतरने लगी। घोड़ों पर, मशकों पर, बेड़ों पर, नावों पर साहसिक योद्धा तैर-तैरकर पार उतरने लगे। दिन-भर नदी पार करने का क्रम चलता रहा। सायंकाल के समय अमीर अपने मन्त्रियों एवं सेनापतियों के साथ नदी पार होने का दृश्य देखने तीर पर आया। दूसरे दिन मध्याह्न काल होते-होते सम्पूर्ण लश्कर भारत भूमि पर निर्विरोध उतर गया। इस बर्बर डाकू का इस भाँति निर्विरोध उस पार उतर जाना और भारत का निश्चित पड़े सोते रहना एक आश्चर्य की बात थी। नद के इस पार अमीर का लश्कर विश्राम करने लगा। समय और ऋतु अति सुहावनी थी। वन में हरिण, मोर और दूसरे सहज शिकार बहुत थे। सुलतान के सरदारों ने अमीर से शिकार की आज्ञा चाही। सुलतान ने कुछ क्षण चुप रहकर कहा- “मेरे बहादुर सरदारो, हम गज़नी की भूमि को छोड़कर यहाँ शिकार और तफ़रीह के लिए नहीं आए हैं। हमारा काम बहुत महत्त्व का एवं दायित्वपूर्ण है। अभी हमें बहुत कार्य करना है। वीरत्व प्रदर्शन का मैदान अभी दूर है। इस बार हमें विकट मरुस्थली को चीर कर सोमनाथ की ईंट से ईंट बजानी है। दुश्मन का शिकार ही हमारा सच्चा शिकार है। वहीं हमारा सबसे प्रथम कर्तव्य है। इस सच्चे शिकार को छोड़कर बेकसूर हिरनों और परिन्दों को मारने से क्या लाभ? यह सब मुझे पसन्द नहीं। चलो बहादुरो, कूच करो, फतह करो और सुर्खरूही हासिल कर दीनो-दुनिया में खुशहाली हासिल करो।" इसके बाद ही अमीर ने तत्काल कूच करने का हुक्म दे दिया। छूटों पर हथौड़ों की