पीरो-मुर्शिद युवक का नाम उसकी माता ने देवा रखा था, पर अब वह अपना नाम देवस्वामी बताता था। अब वह निर्बाध रूप से दण्डी स्वामी के पास रहने और शास्त्राभ्यास करने लगा। परन्तु उसका यह आसरा भी देर तक रहा नहीं। वृद्ध दण्डी स्वामी का जब एक दिन अकस्मात स्वर्गवास हो गया, तो उसके शोक और निराशा का अन्त नहीं रहा। उन्हीं दिनों सोमपट्टन से बारह कोस दूर बीथल ग्राम के निकट समुद्र-तट से थोड़ा हटकर वृक्षों के झुटमुट में एक साधारण झोंपड़ी बनाकर एक मुस्लिम फकीर आकर एकान्तवास कर रहे थे। वृद्ध फकीर बड़े विद्धान थे। वे केवल अरबी भाषा में बात करते थे। किसी से मिलते न थे। न किसी का दान ग्रहण करते थे। उनके पास बहुत सोना था। ग्रामीण जनों को, जो बहुधा उनके पास जा निकलते थे, वे अनायास ही स्वर्णदान देते थे। लोगों में वे कीमियागर साधु प्रसिद्ध थे। पर स्वभाव के वे बड़े रूखे थे। सप्ताहों तक वे बिना खाए- पिए मूढ़वत् पड़े रहते। कभी-कभी कई-कई दिन तक अरबी भाषा में कुछ निरन्तर लिखते रहते। उस समय वे किसी से बोलते नहीं थे। अपनी एकान्तता में विघ्न डालने पर वे क्रुद्ध हो जाते थे। प्रसन्न होने पर स्वर्ण देते थे। परन्तु स्वयं वे अत्यन्त निरीह-भाव से रहते थे। केवल एक बार दो टिक्कड़ अपने हाथ से बनाकर खा लेते थे। देवा भटकता हुआ इन फकीर के पास जा पहुँचा और उनका मुरीद होकर वहीं रहने लगा। सब विवरण सुनकर तथा उसका बलिष्ठ और सतेज शरीर देख, एवं बुद्धि-विद्या सन्तुष्ट होकर फकीर ने उसे रख लिया। फकीर ने उससे हिन्दुस्तानी बोलना सीखा, उसे अरबी पढ़ाई। धीरे-धीरे उसकी सेवा, विनय और सद्गुणों से प्रसन्न हो वे उसे पुत्रवत् प्यार करने लगे। कुछ दिन बाद युवक ने इसी फकीर के हाथों मुस्लिम धर्म अंगीकार कर लिया। फकीर ने उसका नाम रखा, 'फतह मुहम्मद।” दोनों पीरो-मुर्शिद की भाँति झोंपड़ी में रहने लगे। यह वृद्ध मुस्लिम फकीर वास्तव में गज़नी के विख्यात विद्वान अलबरूनी थे। जो अमीर के आदेश से सोमनाथपट्टन की गतिविधि देखने छद्मवेश में यहाँ आ बैठे थे। मुसलमान होने पर युवक पर भी यह भेद खुल गया। छद्मवेशी सुलतान का आना और पीर के साथ अगम अघोर वन जाना भी उससे छिपा नहीं रहा। अघोर-वन में जाकर भी जीवित लौट आने पर उसकी श्रद्धा पीर पर बहुत बढ़ गई। वह आश्चर्य से अत्यन्त विमूढ़ हो गया। अवसर पाकर शोभना के प्रति अपनी आसक्ति भी उसने पीर को बता दी, कुछ भी नहीं छिपाया। वृद्ध फकीर ने उसे आश्वासन दिया, “धीरज धर, वक्त आने पर शोभना तेरी होगी। लेकिन इसके लिए तुझे तलवार की धार पर चलकर उसके पास पहुँचना होगा। इतना कहकर फकीर ने एक बहुमूल्य विकराल तलवार युवक को दी। युवक ने तलवार मस्तक से लगाकर चूम ली। फकीर ने खुश होकर कहा, “अब तू अपने को अमीर का एक सिपहसालार समझ और हर तरह अपने को इस योग्य बना।” इतना कहकर, फकीर ने उसे बहुत स्वर्ण देकर कहा, “घोड़ा और हथियार खरीद और सिपहसालार की तरह रह।” फतह "
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