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रत्नाभरणों से लदी थीं। वे रूप-लावण्य में भी अद्वितीय थीं। उनके उन्नत उरोजों पर मोतियों की कंचुकी कसी थी। मकड़ी के जाले के समान महीन उत्तरीय से छनकर उनकी रूपछटा देखने वाले को उन्मत्त कर रही थी। उनके पैरों में स्वर्ण की पायलें थीं, वे ताल-स्वर पर चरणाघात करके मोहक नृत्य करने और कोकिल कण्ठ से संगीत सुधा बरसाने लगीं। उनका रूप, वैभव, शृंगार और उन्मत्त कर देने वाला नृत्य देखकर अमीर आपा खो बैठा। उसने साथी से कहा, "हज़रत ! अब कहिए, यह सब क्या जिन्नाई करामात नहीं है ?" साथी ने सिर हिलाकर धीरे से कहा, "हो सकता है।" दोनों चुपचाप दृश्य देखते रहे। बालाएं घेरा बनाकर देवी के आगे गरबा नृत्य करने और गाने लगीं। उन सबके हाथ में एक-एक स्वर्णथाल था। थालों में प्रज्वलित आरती थीं। अमीर, गज़नी के साम्राज्य और अपनी सोलह विजय यात्राओं को भूलकर इस अलौकिक रूप और यौवन के ढेर को देख मस्त हो गया। इसी समय उसके कान में वज्र-गर्जन जैसा घोर शब्द सुनाई दिया। संगीत-नृत्य तुरन्त बन्द हो गया। नृत्य करने वाली बालाएँ देवी के चरणों में गिर गईं। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे देवी ने प्रश्न किया, और पिशाच ने उत्तर दिया। “यह कौन?" “विनाश का अग्रदूत, गज़नी का महमूद।" "इस अगम-क्षेत्र में क्यों?" “महाकाल की प्रेरणा से।" "कैसी प्रेरणा ?" “विधि भंग हुई, देवपट्टन विनष्ट हो।" “सो हो।" 'और गुरुपद ?" “गुरुपद का क्या ?" “प्रसन्नमयी महामाया, गंग सर्वज्ञ का गुरुपद भ्रष्ट हुआ। अब गुरुपद का क्या हो ?” "रुद्रभद्र ग्रहण करे।" "जय अम्बे !" नेपथ्य में दुन्दुभी गड़गड़ाने लगी, जैसे प्रलय-मेघ गरज रहे हों। युवतियाँ उठकर देवी के समक्ष नतमुख खड़ी हो गईं। अमीर ने सुना, जैसे पिशाच उसके सिर पर बोल रहा है। "सुना?" "सुना।" “समझा ?" "समझा।" "करेगा?" “करूँगा।" "तो ला विनाश" पिशाच ने गरजकर कहा। एक सुन्दरी आगे बढ़ी, उसने नैवेद्य से एक स्वर्णघट उठा लिया, उसे लेकर वह ca 66