यद्न्धद्विपदानगन्ध पवन-घ्राणेन दूरादपि। वभ्रिश्यन्मदगन्धमग्नकरिभि: श्रीसिन्धुराजस्तथा नष्टः क्षोणिपतिर्यथास्य यशसां गन्धापि निर्णाशित:। ऐपिग्राफिया इण्डिका, जि. 1, पृ. 297। 29. द्वयाश्रय काव्य, सर्ग 7, श्लोक 1-58 30. देखिए- हेमचन्द्र सूरि-कृत 'द्वयाश्रय काव्य'। 31. सुकृतसंकीर्तन-सर्ग 2, श्लोक 5 । 32. कीर्तिकौमुदी, सर्ग 2, श्लोक 3 । 33. डॉ. कोलहान-संग्रहित ‘इन्सकृप्शंस ऑफ नार्दर्न इंडिया'; संख्या 354, पृ. 50 । 34. द्वयाश्रय काव्य सर्ग 7, श्लोक 66-142। 35. कुमारपालचरित, सर्ग 1 । 36. कीर्तिकौमुदी, सर्ग 2 । 37. सुकृतसंकीर्तन, सर्ग 2। 38. रत्नमाला, रत्न 2, पृष्ठ 32 । 39. द्वयाश्रय काव्य, सर्ग 7, श्लोक 64 । 40. प्रबन्धचिन्तामणि, पृ. 49-50 । द्वयाश्रय काव्य, सर्ग 8, श्लोक 15-22 । 42. प्रबन्ध चिन्तामणि, पृष्ठ 80-81 । 43. चेदीश्वरेन्द्ररथ (तोग्ग) ल (भीममु) ख्यान्। कर्णाट लाटपति गुर्जरराट् तुरुष्कान्। यद्धृत्य मात्र विधितानवलोकमाला दोष्णां वलानि कलयन्ति न (योद्ध) लोकान्॥19॥ (ऐपिग्राफिया इण्डिका, जिल्द 1, पृष्ठ 235 सोलंकियों का इतिहास (गौरीशंकर हीराचन्द ओझा), प्रथम भाग, पृष्ठ 75-80 । 45. प्रबन्धचिन्तामणि, पृष्ठ-76-79 46. देखिए प्रबन्धचिन्तामणि, पृष्ठ 122-23 47. डाहल चेदि देश का राज्य था। यह राज्य जबलपुर के आसपास मध्यप्रान्त में 41. 44. था। 48. धुंधकराज आबू के परमार राजा महीपाल का पुत्र था। 49. एपिग्राफिया इंडिका, पृष्ठ 155-56 । 50. तीर्थ कल्प में अद्भुत कल्प। 51. एपिग्राफिया इंडिका, पृष्ठ 75-76 ।
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