ने मुंज का बदला लेने के लिए तैलप के वंशधर जयसिंह पर चढ़ाई करके कोंकण को जीता था, जिसका उत्सव विक्रम सम्वत् 1059 में मनाया गया। भोज के उक्त सम्वत् के दानपत्र से यह बात प्रमाणित होती है। इसी ग्रंथकार ने भोज और भीम की लड़ाई के सम्बन्ध में तीसरी बात यह भी लिखी है कि डाहल देश के राजा कर्ण ने राजा भोज पर चढ़ाई की, और उसको आधा राज्य देने की शर्त पर भीम को पीछे की ओर से हमला करने को बुलाया। इसी लड़ाई के समय में भोज रोगी होकर मर गया और कर्ण ने भोज की सारी सम्पत्ति लूट ली। भीम ने इस पर डांमर को आज्ञा दी कि या तो भोज का आधा राज्य मेरे सुपुर्द करो, नहीं तो तुम्हारा सिर काट लिया जाएगा। इस पर डांमर ने बत्तीस सवारों को लेकर कर्ण को उसके डेरे में दोपहर के समय घेर लिया। इस पर राजा कर्ण ने एक हिस्से में नीलकण्ठ-चिन्तामणि और गणपति आदि सहित स्वर्ण की बनी हुई मंडपिका तथा दूसरे में राज्य की सारी सम्पत्ति रखकर कहा-कि जो हिस्सा अच्छा समझें, उठा लें। सोलह पहर तक वे हिस्से यों ही पड़े रहे। इसके बाद भीम की आज्ञा से डांमर ने मंडपिका लेकर भीम को भेंट कर दी।46 यह घटना विक्रम सम्वत् 1110 के आसपास हुई। जिसमें लाभ डाहल के राजा कर्ण को ही मिला।47 भीमदेव के समय भोज ने अनहिलवाड़े पर चढ़ाई की थी, जिसका बदला लेने के लिए भीमदेव राजा कर्ण का सहायक बना। आबू के परमारों से भीमदेव का संघर्ष सोलंकी मूलराज ने आबू के परमार राजा धरणीवराह का राज्य अपने अधीन कर लिया था। तब से आबू के परमार गुजरात के सोलंकी राजाओं के सामन्त कहलाते थे। भीमदेव के काल में आबू का राजा धुंधक था। उसने भीमदेव की अधीनता स्वीकार करनी नहीं चाही। जिसके कारण भीमदेव के साथ उसका संघर्ष हुआ। इस सम्बन्ध में गुजरात के इतिहास से सम्बन्धित पुस्तकों में तो कुछ नहीं लिखा। परन्तु पौरवाड़ ‘प्रागवाट्' महाजन विमलशाह के बनाए हुए आबू पहाड़ पर के देलवाड़ा गाँव के प्रसिद्ध आदिनाथ के जैन मन्दिर विमलवश ही के जीर्णोद्धार के, विक्रम सम्वत् 1378, ज्येष्ठ सुदी 9 के शिलालेख में लिखा है-“कि चन्द्रावती नगरी का राजा धुंधक48 वीरों का अग्रणी था। जब उसने राजा भीमदेव की सेवा स्वीकार नहीं की, तब राजा भीमदेव उस पर क्रुद्ध हुआ। जिससे वह मनस्वी धुंधक राजा भोज के पास चला गया। फिर राजा भीम ने प्रागवाट वंशी मंत्री विमल को अर्बुद का मंत्री बनाया। उसने विक्रम सम्वत् 1088 में अर्बुद के शिखर पर आदिनाथ का मन्दिर बनवाया।”49 इसके समर्थन में जिनप्रभु सूरि का तीर्थकल्प का लेख भी है, जिसमें लिखा है कि जब गुर्जरेश्वर भीमदेव राजा धुंधक पर क्रुद्ध हुआ, तब उस विमलशाह ने भक्ति से उस भीमदेव को प्रसन्न करके उस धुंधक को चित्रकूट से लाकर विक्रम सम्वत् 1088 में उस धुंधक की आज्ञा से विमल बस्ती नामक मन्दिर बनवाया।50 इन दोनों कथनों का सारांश यही है कि धुंधक ने भीमदेव से विरोध किया जिससे उसे मालव के राजा भोज परमार की शरण में रहना पड़ा। पीछे मन्त्री विमलशाह की मध्यस्थता में उसने भीमदेव से संधि की और उसकी सेवा स्वीकार करके अपना राज्य वापस पाया। धुंधक के पीछे उसका पुत्र प्रणपाल आबू का राजा हुआ, और उसके पीछे उसके छोटे भाई कृष्णराज
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