ऐसा कुछ विद्वानों का मत है। मेरुतुङ्ग आचार्य ने 'प्रबन्धचिन्तामणि' में विक्रम सम्वत् 1065, चैत्र शुक्ल छठ को दुर्लभराज का राज्याभिषेक होना और विक्रम सम्वत् 1077, ज्येष्ठ सुदी द्वादशी को अपना राज्य भतीजे भीम को देना लिखा है। परन्तु 'प्रबन्धचिन्तामणि' की अपेक्षा 'विचार श्रेणी' अधिक प्रमाणित प्रतीत होती है। विचार श्रेणी के अनुसार दुर्लभराज ने 1078 तक राज्य किया। कुछ इतिहासकार दुर्लभराज को दगाबाज़ और साहूकार चोर कहते हैं। अपना मतलब सिद्ध करने के लिए वह अच्छे-बुरे की परवाह नहीं करता था। वह किसी पर भरोसा भी नहीं करता था। न उसे भाई-भतीजों पर विश्वास था। खुशामदी एवं जी- हरिए उसे घेरे रहते थे। वह असन्तोषी पुरुष था और मतलब पूरा करने के लिए वह दया- माया, नीति-अनीति की तनिक भी परवाह नहीं करता था। कहा जाता है कि उसने महमूद से सन्धि कर ली थी, और अपने भाई वल्लभदेव को शत्रु के सुपुर्द करने में सहायता की थी। भीमदेव संस्कृत पुस्तकों में भीमदेव का काफी चरित्र मिलता है। 'प्रबंध-चिन्तामणि' काव्य में लिखा है कि भीमदेव ने सिन्धु देश पर चढ़ाई की। उस समय मालव के राजा भोज के सेनापति कुलचन्द ने अनहिल्लवाड़े पर हमला किया और उस नगर को जीतकर 'धवल गृह' के द्वार पर, जहां घड़ी बजा करती थी - कौड़ियां गढ़वाकर और विजय-पत्र साथ लेकर मालव को लौटा। सब वृत्तान्त सुनकर भोज ने कहा कि तुमने वहाँ पर कोयले क्यों नहीं गाड़े, कौड़ियाँ गाड़ने का फल तो यह होगा कि मालव का कर गुजरात को जाएगा।42 भोज की इस विजय का उल्लेख ग्वालियर राज्य के उदयपुर में मिले हुए परमार राजा उदयदित्य के समय के शिलालेख में भी मिलता है। परन्तु प्रबन्धचिन्तामणि का काव्यकार कुछ दूसरी ही बात कहता है।43 उसने यह लिखा है कि एक साल ऐसा हुआ कि वृष्टि नहीं हुई, और अन्न और घास का मिलना कम हो गया। इसी समय भीमदेव को सूचना मिली, कि भोज ने उसके देश पर आक्रमण किया है। इस पर उसने अपने संधि-वैग्रहिक 'डांमर' को यह आज्ञा दी, कि कुछ दण्ड देकर इस चढ़ाई को रोकना चाहिए। डांमर भोज के दरबार में गया। वहां होने वाले एक नाटक-अभिनय में तैलपदेव का एक दृश्य आया। उस प्रसंग पर डांमर ने राजा भोज के सामने भरी सभा में यह कहा कि तैलपदेव मुंज को सूली पर चढ़ाने के कारण प्रसिद्ध हैं। इस आक्षेप से उत्तेजित होकर भोज ने तैलप देश पर चढ़ाई कर दी।44 उधर से तैलप की बड़ी सेना भी उसका सामना करने को आई। इस अवसर पर डांमर ने एक जाली पत्र बनाकर भोज से कहा, कि भीम भी मालव के लिए प्रस्थान कर भोगपुर तक आ पहुंचे हैं। इस पर भोज ने घबराकर डांमर से कहा, कि इस समय गुजरात के महाराज भीमदेव को मालव पर आक्रमण करने से रोको। और एक हाथियों की जोड़ी भीमदेव को भेंट की।45 परन्तु कुछ ऐतिहासिक तत्त्व इस घटना के विरोधी हैं। पहली बात तो यह है कि तैलप का देहान्त सम्वत् 1054 में ही हो गया था और उस समय मालव का राजा भोज नहीं, वरन् उसका पिता सिन्धुराज था। भोज ने तैलप पर नहीं, किन्तु उसके पौत्र जयसिंह पर चढ़ाई की थी। भीमदेव का तो राज्याभिषेक भी इस घटना के 12 वर्ष बाद हुआ। भोज
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