.. मिली महाराज कुमारपाल की प्रशस्ति में, जो विक्रम सम्वत् 1208, आश्विन शुक्ल 15, गुरुवार की है, लिखा है कि “उस मूलराज का पुत्र, राजाओं में शिरोमणि, चामुण्डराज हुआ, जिसके मस्त हाथियों के मद-गन्ध की हवा के सूंघने मात्र से दूर से ही मदरहित होकर भागते हुए अपने हाथियों के साथ ही साथ राजा सिन्धुराज इस तरह नष्ट हुआ कि उसके यश की गन्ध तक नहीं रही।"28 प्रशस्ति के शिलालेख में “सिन्धुराजः क्षोणिपतिः” पाठ है-जिसका अर्थ राजा सिन्धुराज या सिन्धुराज नामक यह होता है। डॉक्टर वूलर ने उक्त प्रशस्ति का सम्पादन करते हुए इसका अर्थ सिन्धु देश का राजा कहा है। परन्तु यह ठीक नहीं है। क्योंकि सिन्धुराज का विशेषण क्षोणिपति है, इससे यह निश्चय होता है कि चामुण्डराज के हाथ से सिन्धुराज नामक राजा ही मारा गया, सिन्धु का राजा नहीं। सम्भवत: यह घटना विक्रम सम्वत् 1066 के कुछ पहले हुई। कारण, विक्रम सम्वत् 1050 तक तो मुंज ही मालव का राजा था, जिसका छोटा भाई सिन्धुराज था। चामुण्डराय का देहान्त 1066 में हुआ। इसलिए विक्रम सम्वत् 1050 और 1066 के बीच ही सिन्धुराज का मारा जाना माना जा सकता है। हेमचन्द्र आचार्य ने अपने द्वयाश्रय काव्य में चामुण्डराज को गुणी,कर्तव्य-परायण शत्रु-संहारक, परोपकारी और धनी दिखाया है।29 चामुण्डराज के तीन पुत्र थे : वल्लभराज, दुर्लभराज और नागराज। वल्लभराज ने मालव पर चढ़ाई की, पर वह बीमार होकर वहीं मर गया। वहां से उसका सेनापति लौट आया। वल्लभराज की मृत्यु से चामुण्डराज बहुत दु:खी हुआ और वह दुर्लभराज को राज्य दे नर्मदा-तट पर शुक्ल तीर्थ में आत्म-ध्यान में प्रवृत्त हुआ। इस घटना का उल्लेख यद्यपि द्वयाश्रय काव्य में किया तो गया है, परन्तु उसका टीकाकार अभयतिलक गणी यह कहता है, कि चामुण्डराज बड़ा कामी था। इसीलिए उसकी बहिन चाचिणीदेवी ने उसको सिंहासन से उतार कर वल्लभराज को गद्दी पर बैठाया। अभयतिलक गणी के इस कथन में सत्यता प्रकट होती है, क्योंकि भीमदेव प्रथम के वृत्तान्त में फारसी के इतिहासकारों से उद्धृत किए जाने वाले दाबशिलीन के हाल से उसका समर्थन होता है। ‘प्रबन्धचिन्तामणि' के कथनानुसार चामुण्डराज ने अनहिल्लपट्टन में चायणेश्वर का मन्दिर बनवाया था। इससे चाचिणी देवी नाम तो ठीक है। फार्बस ने अपनी ‘रासमाला' में लिखा है कि चामुण्डराज ने अपनी बहिन चाचिणी देवी से व्यभिचार किया। किन्तु गुजरात के किसी भी इतिहास से इस कथन की पुष्टि नहीं होती। सम्भवतः फार्बस ने अभयतिलक गणी के वक्तव्य को भ्रम से ऐसा लिख दिया है। रत्नमालाकार लिखता है कि चामुण्डराज का शरीर पीले रंग का, कृश था। खाने-पीने और शृंगार में वह बहुत रुचि रखता था, तालाब आदि बनवाने तथा बाग लगाने का भी उसको बहुत शौक था। चामुण्डराज ने विक्रम सम्वत् 1053-1066 तक, अनुमानतः 14 वर्ष राज्य किया। कहा जाता है कि बचपन में एक बार चामुण्डराज अपने पिता महाराज मूलराज के पास बैठा था। उस समय लाट देश के राजा वारप ने मूलराज को भेंट में कुछ हाथी भेजे थे। चामुण्डराज ने एक हथिनी को लक्ष्य करके कहा, “यह अशुभ हथिनी है। क्योंकि इसकी
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