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मुसलमानों की सेना में प्रत्येक महत्त्वाकांक्षी योद्धा को उन्नत होने, आगे बढ़ने तथा युद्ध-क्षेत्र में तलवार पकड़ने का अधिकार तथा सुअवसर प्राप्त था। यहां तक, कि क्रीत दासों को भी अपनी योग्यता के कारण, न केवल सेनापतियों के पद प्राप्त होने के सुअवसर मिले, प्रत्युत वे बादशाहों तक की श्रेणी में अपना तथा अपने वंश का नाम लिखा सके। कुतुबुद्दीन, इल्तमश, बलबन आदि ऐसे व्यक्ति थे जो दास होते हुए भी अद्वितीय पराक्रमी और शक्तिशाली थे। इस प्रकार आप देखते हैं कि मुसलमान आक्रान्ताओं ने भारत में आकर यहां की जनता को अस्त-व्यस्त, राज्यों को खण्ड-खण्ड, राजाओं को असंगठित और राजनीति तथा युद्धनीति में दुर्बल पाया। अलबत्ता उनमें शौर्य, साहस और धैर्य अटूट था। परन्तु केवल इन्हीं गुणों के कारण वे सब भाँति सुसंगठित मुसलमानों पर जय प्राप्त न कर सके उन्हें राज्य और प्राण दोनों ही खोने पड़े। गुर्जरेश्वर गुर्जरेश्वर ठेश्वर सोलंकियों का मूल पुरुष, जिसने कि गुजरात में पट्टन का राज्य स्थापित किया, मूलराज प्रथम था। उसने सपादलक्षीय राजा चौहान विग्रहराज और तैलंग सेनापति वारप से युद्ध किए। इन युद्धों में वारप मारा गया। और उसके दस हज़ार घोड़े और अठारह सौ हाथी मूलराज के हाथ लगे। सम्भवतः चौहान राजा विग्रहराज से उसने सन्धि कर ली।20 परन्तु ‘प्रबन्ध-चिन्तामणि' में आगे चलकर यह लिखा है कि मूलराज विग्रहराज से डर कर कन्था दुर्ग में भाग गया था। पृथ्वीराज-विजय काव्य और हमीर- महाकाव्य भी मूलराज की पराजय ही को ध्वनित करते हैं।21 पृथ्वीराज-रासो में इस लड़ाई का विस्तृत वर्णन है। उसमें गुजरात के राजा बालुकाराय का नाम लिखा है। परंतु इस नाम का कोई राजा गुजरात में नहीं हुआ। सम्भवतः 'चालुक्यराय' के स्थान पर बालुकाराय लिखा गया है। वह युद्ध विक्रम सम्वत् 987 में हुआ था। परन्तु रासो का यह सम्वत् गलत मालूम होता है। मूलराज ने विक्रम सम्वत् 1017 से 1052 तक राज्य किया। इसलिए यह युद्ध विक्रम सम्वत् 1017 के बाद ही होना चाहिए। इसके अतिरिक्त विग्रहराज दूसरे वीसलदेव का एक शिलालेख विक्रम सम्वत् 1030 का हर्षनाथ के मन्दिर में, जो शेखावाटी में है, मिला है। उसमें इस युद्ध का कोई ज़िक्र नहीं है। इससे यह ध्वनित होता है कि यह युद्ध उक्त सम्वत् के पीछे हुआ। इसके अतिरिक्त हेमचन्द्र ने अपने द्वयाश्रय काव्य में विग्रहराज और मूलराज के इस युद्ध की कोई चर्चा नहीं की। परन्तु सोलंकी वारप को मारने की बात बहुत बढ़ा-चढ़ाकर की है। यदि वारप मूलराज के हाथ से मारा गया हो, तो भी लाट देश पर मूलराज का अधिकार नहीं पाया जाता। जैसा कि कीर्तिराज के दानपत्र से प्रमाणित है। द्वयाश्रय काव्य के आधार पर ही यह भी ज्ञात होता है कि मूलराज ने सौराष्ट्र के आभीर राजा गृहरिपु यादव चूड़ासमा को युद्ध में घायल करके बन्दी किया, और उसके सहायक कच्छ के राजा लाखा को युद्ध में मारा। फिर उसने सोमनाथ की यात्रा की। 'कीर्तिकौमुदी'22 और 'सुकृतसंकीर्तन'23 तथा 'कुमारपाल-चरित' में भी मूलराज के हाथ से लाखा का मारा जाना प्रमाणित है। परन्तु प्रबन्धचिन्तामणिकार यह कहता है कि उसने मूलराज को ग्यारह बार हराया था। अन्त में मूलराज ने उसे कपिलकोट के किले में घेर कर द्वन्द्व-युद्ध में मारा। कहते हैं कि मूलराज एक कपटी अनपढ़ व्यक्ति था। उसके