किन्तु कुमारपाल का मन्दिर बचा रहा। फरिश्ता मुजफ्फरखां के आक्रमण, 795 हिजरी के सिलसिले में कहता है-“तब वह सोमनाथ की ओर बढ़ा, और वहाँ स्थित सब हिन्दू मन्दिरों को ध्वस्त करके उनके स्थान पर मस्जिद बनवा दी। उसने वहाँ धर्मप्रचार के लिए मुल्लाओं को छोड़ दिया। अपने कुछ अफसरों को वहाँ का शासन सम्भालने पर नियुक्त किया और स्वयं 798 हिजरी में पाटन लौट आया। अब हिन्दू पूर्ण हताश हो गए और फिर कभी सोमनाथ की इतनी धूमधाम नहीं सुनाई दी। वर्तमान मन्दिर का स्थान भी पूर्व-स्थित मन्दिर के स्थान पर नहीं प्रतीत होता। वर्तमान मन्दिर इन्दौर की रानी अहिल्याबाई ने उन खण्डहरों के समीप ही बनवाया था। इस पर भी एक और अन्तिम मुस्लिम आक्रमण गुजरात के महमूद बघर्रा या मुजफ्फर द्वितीय ने किया। 19वीं शताब्दी में भारत के एक गर्वनर-जनरल ने तथाकथित सोमनाथ मन्दिर के द्वार गज़नी से लाकर आगरे के किले में रक्खे थे। परन्तु पीछे यह प्रमाणित हो गया कि वास्तव में वे द्वार सोमनाथ के नहीं थे। अन्तिम काल में मुसलमानी आक्रमण से बचने के लिए मन्दिर में दो लिंगों की स्थापना की गई थी। एक भूमिस्थ, दूसरा बाहर। भूमिस्थ असली था और वहाँ जाने का मार्ग गुप्त रक्खा गया था। यूरोपियन लेखक कोजिन्स (Cousens) मन्दिर का विवरण इस प्रकार लिखता है19 -“सोमनाथ का पुराना मन्दिर नगर में, समुद्र के पूर्वी तट पर स्थित है। समुद्र और मन्दिर के बीच एक भारी दीवार है, जो मन्दिर को सुरक्षित करती है। इस मन्दिर की दीवारों की प्राचीनता लगभग नष्ट हो चुकी है। उसमें बहुत बार मरम्मत हो चुकी है और बहुत भाग फिर से बनाया जा चुका है। खासकर उस समय-जबकि उसे मस्जिद से परिवर्तित किया गया। वह विशाल गुम्बद, अपितु सारी छत और मीनार-जो प्रवेश-द्वार के सामने ही है- मुसलमानों द्वारा बनाए हुए हैं। सन् 1838 में लेफ्टिनेन्ट पोस्टन्स लिखता है कि उसके आने के कुल (Lieutent Postans) साल प्रथम तक मन्दिर की छतें तोपें रखने के लिए काम आती थी-जो बेरावल के बन्दर को समुद्री डाकुओं से रक्षित रखने के लिए रखी गई थीं। केवल एक ही बात से यह प्रकट होता है कि सारा मन्दिर फिर से बनवाया गया और वह बात यह है कि उसके मूलाधार में 'अश्वरथ' बने हैं। और इस मन्दिर का परिमाण-जो लगभग 140 फीट है-उतना ही है जितना सिद्धपुर के 'रुद्र महालय' का है। दीवारों के बाहरी भाग-जो ध्वस्त हो चुके हैं-उनसे प्रतीत होता है कि वे दीवारें प्राचीन दीवारों पर ही बनाई गई हैं। खासकर दक्षिण भाग में, जहाँ पुराने मन्दिर के नीचे के धरातल का भाग स्पष्ट दीख पड़ता है-यह बात स्पष्ट हो जाती है। अनेक कारणों पर विचारकर मैं इस निर्णय पर पहुँचा हूँ, कि मन्दिर का वर्तमान ध्वस्त भाग, उसका अवशेष है जो ईस्वी सन् 1169 में कुमारपाल ने बनवाया था। यदि यह सत्य है तो वह पुराना मन्दिर, जिसके अवशेष दीवारों के बीच में प्रकट होते हैं, सम्भवत: भीमदेव का बनाया हुआ होगा; परन्तु असल प्राचीन मन्दिर, जिसपर महमूद ने आक्रमण किया था उसका कोई नामोनिशान भी नहीं है। भीमदेव के मन्दिर के जो ध्वंस अभी हैं, उनसे यह भी प्रकट होता है कि वह मन्दिर कुमारपाल के मन्दिर की अपेक्षा बहुत छोटा था। किनलौक फार्बस का कहना है कि “फरिश्ता ने जो महमूद-काल के सोमनाथ का वृत्तान्त दिया है, वह वर्तमान ध्वंसों पर लागू नहीं होता। और इस कारण यह असम्भव प्रतीत होता है कि महमूद ने जो
पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३९७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।