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पीने से अमीर की चेतना ठीक हुई। उसने ध्यान से शोभना की ओर देखा, उस देखने का अभिप्राय था, तुम कौन हो? शोभना की आँखों में हर्ष नाच उठा। उसने कहा, “आप क्या बैठ सकते हैं?” उसने सहारा देकर उसे अपनी गोद में बैठा लिया। थोड़ी देर में अमीर की चेतना और शक्ति लौट आई। अब शोभना ने अपने मुख पर थोड़ा आँचल ढांप लिया। फिर उसने मृदु कण्ठ से कहा, “क्या आप ऊँट पर चढ़ सकते हैं।' अमीर ने सिर हिलाकर स्वीकृति दी। फिर उसने बेचैनी से चारों ओर देखकर कहा, "उस कयामत के तूफान में कौन-कौन ज़िन्दा बचा?" शोभना ने दो उँगलियाँ उठाकर कहा, “केवल दो – मैं और आप।" "बहुत हैं, बहुत हैं। शुक्र है खुदा का!" उसने वहीं बालू से वजू किया और घुटनों के बल बैठकर नमाज़ पढ़ी। फिर फातिहा पढ़कर दो मुट्ठी बालू उठाकर भूमि पर डालकर, “अलविदा, बहादुर साथियो” कहा। अब उसी के साथ दो बूँद आँसू खिसककर उसकी दाढ़ी को छू गए। फिर अमीर ने सहारा देकर शोभना को सांड़नी पर सवार कराया और आप भी सवार हुआ। रेत के समुद्र में तैरती हुई सांड़नी वहाँ से चल खड़ी हुई। सूरज का ध्यान कर वह पूर्व की ओर को बढ़ता चला गया। चारों ओर से गीधों की काली-काली टोलियाँ उसी ओर को चली आ रही थीं। उसने राह में रेत में ढके-उघड़े हाथी, घोड़े, ऊँट और सिपाहियों को चुपचाप पड़े देखा। बहुतों तक गीध पहुँच चुके थे। मीलों तक मुर्दो की कतार-ही-कतार बँधी थी। बीच-बीच में हाथी रेत में दबे हुए सूंड हिला रहे थे, और घोड़े पड़े हुए पैर फड़-फड़ा रहे थे। किसी-किसी मुर्दे सिपाही की आँखें गीधों ने निकाल ली थीं। कहीं-कहीं गीदड़ों के झुण्ड-के-झुण्ड रेत से मुर्दो को उखाड़कर उनका पेट फाड़ आंतें खींच रहे थे। यह सब हृदयविदारक दृश्य देखते हुए कठोर-हृदय अमीर महमूद आँखों से अश्रु-विमोचन करता हुआ चला जा रहा था। बिना राह की राह पर भूख और प्यास, दु:ख और दर्द से ओत-प्रोत। परन्तु शोभना के सान्निध्य से सम्पन्न। तपता सूर्य इन आरोहियों के सिर पर होकर अस्ताचल को चला गया। दिशाएँ लाल हुईं और फिर उन्होंने अन्धकार के पर्दे से मुँह ढाँप लिया। इसी समय उनकी सांड़नी सुरसागर के तीर पर जा रुकी। अमीर सांड़नी से उतरा, शोभना को हाथ पकड़कर उतारा। पाल पर बसना बिछा दिया, उसपर शोभना को बैठने का संकेत कर उसने वजू किया। नमाज़ पढ़ी। और फिर चुपचाप आकर शोभना के सामने खड़ा हो गया। वह गज़नी का सुलतान अमीनुद्दौला निज़ामुद्दीन कासिम महमूद, जो बीस वर्ष गज़नी के वीरों के शीर्ष-स्थल पर सुशोभित रहा; जिसकी विजयिनी तलवार का आतंक आधे भूमण्डल पर व्याप्त हो गया था, जिसने अपने साहस से अतुल सम्पदा, सत्ता और वैभव प्राप्त किया; खुरासान और गज़नी अधिकृत कर अतुल ऐश्वर्य का स्वामी बना,जिसने ग्वालियर,कन्नौज,दिल्ली,सपादलक्ष और गुजरात की संयुक्त-सैन्यों को पराजित किया; जिसका प्रखर प्रताप दिग्दिगन्त में फैला था; जिसने नगरकोट की अपरिमित सम्पदा हस्तगत की, और मथुरा की शताब्दियों की संचित सम्पदा को लूट उसे भस्म कर दिया था; जिसने बड़े-बड़े अभिमानी पण्डितों और श्रीमन्तों को गज़नी के बाज़ारों में दो-दो रुपयों में बेचा था; जिसके शौर्य और तेज की यशोगाथा कविगण गाते नहीं थकते थे; जो अद्वितीय