सुर-सागर पर प्रभात हुआ। आकाश स्वच्छ था और शीतल मन्द पवन बह रहा था। कल के विनाशक महाकाल के विकराल रूप का इस समय कुछ भी लक्षण न था। दूर तक लाल- लाल रेत के टीले-ही-टीले नज़र आते थे। ऐसे ही समय में शोभना ने आँखें खोलीं उसने देखा, उसका समूचा शरीर रेत में दबा पड़ा है और उसकी सांड़नी अपनी थूथन से उस पर अटे हुए रेत को उछाल रही है। थोड़ा बल लगाकर उसने अपने शरीर को रेत की समाधि से बाहर निकाला। वह उठ खड़ी हुई। सांड़नी आगे आकर उसके निकट आ खड़ी हुई। शोभना ने प्यार से उसकी थूथन को हाथों में लेकर थपथपाया। उसने अपने चारों ओर दृष्टि डाली। किसी जीवित जीव का वहाँ चिह्न न था। उसने सोचा, हे भगवान्, यह इतना बड़ा लश्कर और वह प्रतापी महमूद, सभी इस मरुभूमि के भोग बन गए। न जाने किस अतर्कित आकर्षण से अभिभूत हो वह मन में अमीर के लिए वैकल्य अनुभव करने लगी। उसने महमूद के हृदय का प्यार देखा था। और उसके आँसू भी। उन आँसुओं ने उसे द्रवित कर दिया। इस समय वह अपनी सम्पूर्ण चेतना से अमीर की कल्याण-कामना करने लगी। पर, जिस अमीर पर शोभना की कृपा-कोर पड़ी है, वह अमीर है कहाँ? धीरे-धीरे सूर्य ऊँचा उठने लगा। उसने देखा, इधर-उधर कुछ काली-काली वस्तुएँ रेत में चमक रही हैं। दौड़कर उसने पास जाकर देखा, हाथी, घोड़े, सिपाही, ऊँट थे। सबकी रेत में समाधि हो गई थी। वह सोचने लगी, क्या अमीर भी यहीं-कहीं चिर-निद्रा में सो रहा है। वह आशंका और उद्वेग से भरी, दौड़-दौड़कर एक-एक को देखने लगी। बहुत मनुष्य और पशु दम घुटकर मर चुके थे। कुछ में दम था, पर शोभना को उनके लिए कुछ करना शक्य न था। थोड़ी ही देर में उसकी दृष्टि किसी चमकदार वस्तु पर पड़ी। प्रभात की सूर्य की किरणों में वह वस्तु आग के अँगारे की भाँति दहक रही थी। बालू हटाकर उसने देखा तो उसका हृदय धड़कने लगा। हे ईश्वर , यह तो सुलतान की कलगी का लाल है। अवश्य ही सुलतान भी कहीं पास है। थोड़े ही परिश्रम से अपने घोड़े के शरीर के नीचे दबे हुए सुलतान महमूद को उसने खोज निकाला। ज़ोर करके उसने उसे घोड़े के नीचे से निकाला, नाक पर हाथ रखकर देखा, धीरे-धीरे साँस चल रही थी। छाती पर कान रक्खा, हृदय धड़क रहा था। शोभना आनन्द से विभोर हो गई। उसने भूमि पर माथा टेककर भगवान सोमनाथ की वन्दना की, और फिर उसने इधर-उधर देखा, कोई देखनेवाला वहाँ न था। वह धीरे से झुकी और अमीर के सूखे निस्पन्द होंठों पर अपने जलते हुए होंठ रख दिए। अब उसे अमीर को होश में लाने की चिन्ता हुई। उसे यह देखकर परम हर्ष हुआ कि अमीर के घोड़ों की जीन में पानी की भरी हुई मशक पड़ी थी। उसने पानी लेकर प्रथम स्वयं पिया। पानी पीने से उसके प्राण हरे हो गए। फिर उसने पानी की बूंदें अमीर के मुँह और आँखों में डालनी प्रारम्भ की। थोड़ी ही देर में अमीर ने आँखें खोली। उसने अपनी आँखें इधर-उधर घुमाई । इधर-उधर घूमकर उसकी आँखें शोभना के मुख पर केन्द्रित हो गईं। उसके होंठ हिले, पर शब्द नहीं फूटा। शोभना ने थोड़ा जल और उसके मुँह में डाला। जल
पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३६६
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।