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ताहर की गढ़ी में अपने कैदियों को लेकर ताहर डाकू तेज़ी से लौट चला। वह राज-मार्ग छोड़ जंगल में घुसा। बीहड़ दुर्गम जंगल में भूखे-प्यासे गर्वीले बलूची सवार, अपने घोड़ों और हथियार तथा हिन्दुस्तान की समूची कमाई गंवा,पशु की भाँति बन्दी बने पांव-प्यादे डाकुओं के साथ दौड़े चल रहे थे। जब उन्होंने हिन्दू स्त्री-पुरुषों को रोते-कॉपते रस्सियों से बाँधकर अपने घोड़ों के साथ निर्दयतापूर्वक घसीटा था, तब उन्होंने उनके दु:ख-दर्द और दुर्भाग्य की कल्पना भी न की थी। पर अब आज इस समय उन्हें अपनी गज़नी की पहाड़ियों में प्रतीक्षा करती हुई पत्नियों और बच्चों की याद आ रही थी। वे अधीर हो रहे थे। जंगल के एक विस्तृत मैदान में एक स्वच्छ पानी का सरोवर था। वहाँ हरियाली भी काफी थी। ताहर ने वहीं डेरा डाल दिया। कई डाकू कमर खोल हाथ-मुँह धोने और हवा खाने लगे। बहुत-से डाकू घोड़ों पर चढ़कर आस-पास के गाँवों से भेड़-बकरियाँ लूट लाए। बात-की-बात में पशुओं को काट-कूटकर वे खा गए। कैदियों को भी भोजन दिया। ताहर ने महमूद को पास बैठाकर भोजन कराया और फिर वे आगे को चले। रात-भर वे चलते ही चले गए। दूसरे दिन उजाड़ रेगिस्तान के लक्षण दीख पड़ने लगे। चारों ओर बालू के टीले, थूहर और नागफनी के कांटेदार झाड़। बबूल और पीलू के इक्का-दुक्का पेड़। कहीं-कहीं पहाड़ी टीले और सूखी-नंगी चट्टानें। अन्त में ताहर की गढ़ी आई। गढ़ी कच्ची मिट्टी की बनी थी। गढ़ी की दीवार बारह हाथ चौड़ी थी। एक के बाद एक, इस प्रकार उसके तीन परकोटे थे। ताहर ने भीतर ले जाकर सब कैदियों को पशुओं की भाँति एक बाड़े में बन्द कर दिया। और महमूद के लिए एक उसारे पर चारपाई डालकर कहा, “बैठ महमूद। आराम कर।" और गज़नी का सुलतान, अमीर महमूद, खुदा का बन्दा, जगद्विजयी, चुपचाप चारपाई पर बैठ गया। इसी समय ताहर बहुत-से मकई के भुट्टे गर्मागर्म भुने हुए लेकर आया। और कहा, “खा महमूद, एकदम ताज़ा हैं।" वह खुद भी पास बैठकर भुट्टे खाने लगा। महमूद की आंतें भूख से बिलबिला रही थीं। भुट्टे उसे अमृत की भाँति स्वादिष्ट लगे। खा चुकने पर उसने पानी के लिए इधर-उधर देखा, अभिप्राय समझकर ताहर ने उँगली से संकेत करके कहा, “वहाँ कुआँ है, वहीं डोलची पड़ी है, खींचकर पी आ।” और जब अमीर डोलची खींच रहा था, उसके जांनिसार तुर्क सिपाही और सरदार बाड़ों में बन्द भाग्य का यह खेल देख रहे थे। भुट्टे खाकर महमूद नीम की छांह में सो गया। थकावट ने उसकी सब चिंताओं पर परदा डाल दिया। भरपूर नींद सोने के बाद उसका मन कुछ हल्का हुआ। उसने ताहर से बातचीत की। अमीर ने कहा, “ताहर, मैं खुदा का बन्दा महमूद, वहीं कहूँगा जो मुझे कहना चाहिए। तेरी कैद में मैं खुश हूँ – सब ज़िम्मेदारियों और पाबन्दियों से दूर। तेरे दिए इन भृट्टों की मैं कीमत अदा नहीं कर सकता।"