मानिक चौक में अनहिल्ल पट्टन के मानिक चौक में आदमियों के ठठ टूटे पड़ते थे। चारों ओर से लोग दौड़े चले आ रहे थे। आज अभागे कैदियों को कत्ल और भेड़-बकरी की भाँति नीलाम किया जाने वाला था। कैदियों को मजबूत रस्सियों में बाँध, पठान सिपाहियों ने घेर रखा था। जिन कैदियों का सिर काटा जाने वाला था, वे सबसे पृथक् पीठ-पीछे हाथ-बाँधे दो-दो की कतार में खड़े थे। कैदियों की दुर्दशा देख-देख कर सहस्रावधि नागरिकों की आँखों से चौधार आँसू बह रहे थे। इस समय कैदियों की दशा वर्णनातीत थी। इनमें सैकड़ों सरदार, सेठिया, सैकड़ों स्त्रियाँ और किशोर अवस्था की युवक-युवतियां थे। इनमें बहुत-से छाती कूट-कूटकर रो रहे थे। अठवाड़ों से ये अंध कारागार में बन्द थे। महीनों से इन्हें भर-पेट भोजन और नींद-भर सोना नहीं मिला था। नहाने-धोने की तो बात क्या है। वह जीते-जी नरक का दुख भोग रहे थे। पुरुषों की दाढ़ी बढ़कर और मैल-मिट्टी लगकर उनकी सूरत भूत के समान बन गई थी। महीनों से उन्होंने वस्त्र नहीं बदले थे। उनके सगे-सम्बन्धी जो दूर देश से उनके साथ ही साथ उन्हें छुड़ाने की खटपट में बड़े-बड़े दु:ख सहकर गिरते-पड़ते आए थे, इस भीड़ में भटकते-रोते और जिस-तिस की खुशामदें करते फिर रहे थे। बहुत पत्नियाँ पति को, बहुत माताएँ पुत्र को, बहुत पुत्र पिता-माता को, बहुत भाई-भाई को ढूंढ़ते फिर रहे थे। पृथ्वी पर उनकी सुनने वाला, उस संकट से उन्हें उबारने वाला कोई न था। उनका करुण-कन्दन सुन- सुनकर बड़े-बड़े दृढ़ चित्त वालों का कलेजा दहल जाता था। जिन कैदियों को प्राणदण्ड मिलने वाला था, उनकी दशा और भी खराब हो रही थी। अकारण इतने निर्दोष स्त्री-पुरुषों का इस प्रकार हनन होने की कल्पना से उस दिन गुजरात की राजधानी आँसुओं से नहा रही थी। बाज़ार-कारबार सब बन्द थे। एक भी घर में चूल्हा नहीं जला था। प्रत्यक्ष मृत्यु को मूर्तिमान देखकर प्राणदण्ड पाए हुए कैदी थर-थर काँप रहे थे। वे जानते थे, कोई घड़ी के मेहमान हैं। यम के समान जल्लाद सुर्ख पोशाक पहने, भारी तेगा हाथ में लिए, हुक्म के इन्तजार में खड़े थे। कुछ कैदी धीरज धर के भगवान का स्मरण कर आँखें बन्द करके बैठ गए थे। प्राण-दण्ड का समय हो गया। सरदार ने आगे बढ़कर सुलतान का हुक्म उच्च स्वर से सुनाया- “ बदबख्त कैदियों, तुमने शाहे-जलाल सुलतान महमूद के मुकाबले तलवार उठाई, और जिहाद के सिपाहियों का मुकाबला किया। तुम काफिर हो, अब सुलतान के हुक्म पर तुम्हारा सिर काटा जाता है, जिससे तुम अपनी करनी का फल भोगो और ताकयामत दोज़ख की आग में जलो।" यह मृत्यु-घोषणा सुनकर अनेक कैदी ज़ोर-ज़ोर से राम, राम, शिव, शिव पुकारने लगे, अनेक हँसने और अनेक रोने लगे। अब भी नगर-निवासियों की आशा सेठों की ओर थी, जो सुलतान के पास बन्दियों
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