लाल नज़र बहुत छिपाने पर भी बन्दी गृह का यह भीषण समाचार अनेक रूप धारण कर, नगर और लश्कर में फैल गया। नगर में हाहाकार मच गया। लोगों ने कारोबार हाट-बाज़ार सब बन्द कर दिया। अमीर के कानों में भी यह समाचार इस ढंग पर पहुँचा दिया गया कि वह गुस्से से लाल चोट हो गया। अमीर महमूद एक विजेता, साहसिक योद्धा और उच्च मन का बादशाह था। वह विद्या-व्यसनी और तेजस्वी भी था। अपनी महान आकांक्षाओं की पूर्ति करने में उसे बड़े-बड़े नरमेध करने पड़े, लाखों मनुष्यों का वध करना पड़ा। परन्तु ऐसे अत्याचार और निर्मम हत्याकाण्ड का कलंक वह नहीं सह सका। उस काल में अभागे बन्दियों की सर्वत्र ऐसी ही दुर्दशा होती थी। इसलिए जो भयानक अवस्था इन कैदियों की थी, उसका दोष केवल सुलतान पर ही नहीं लादा जा सकता था। एक बार जो बन्दी हुआ, उसे तो उन दिनों जीते जन्म नारकीय दु:ख भोगना ही पड़ता था। न करने योग्य काम उन्हें करने पड़ते थे, और उन पर कोई दया की कोर करता भी न था। महमूद के सलाहकारों ने कहा कि इन कैदियों में जो भयानक अपराधी हों, हरीफ हों, जिन्होंने मुसलमान पर तलवार उठाई हो, उन्हें कत्ल कर दिया जाए। शेष को बाज़ारों में ऊंचे दामों की बोली बोलकर बेच दिया जाए। इस संबंध में महमूद के विचार कुछ और ही थे। वह जानता था कि इन कैदियों को गुलाम की भाँति बेचने से अधिक दाम मिलते हैं, अत: मनुष्य को पशु की भाँति बेचने में कुछ दोष है। इस पर उसने कभी विचार ही नहीं किया। अब तक कैदी भी उसकी आमदनी का एक ज़बर्दस्त जरिया बनते रहे थे। लोभी मनुष्य के हृदय में दया-माया कहाँ? उस काल में बहुत लोग गुलामों को बेचने का धन्धा करते थे। उन्हें कोई अधर्म नहीं समझता था। ऐसे मनुष्य टोली बाँधकर, हथियारबन्द हो, अरक्षित गाँवों पर पड़ते, और जो सामना करता, उसे निर्दयता से मार-काटकर युवकों, युवतियों और रूपवती स्त्रियों को पकड़ चलते बनते, और उन्हें विदेशों में बेचकर खूब धन कमाते थे। इस कुकर्म को करते उन्हें तनिक भी दया-माया नहीं उपजती थी। महमूद भी इसका अभ्यस्त था। कैदियों पर के अत्याचार उसे अत्याचार नहीं प्रतीत होते थे। परन्तु इस बार जो घटना उसके कानों में पड़ी, उससे वह क्रोध से अधीर हो गया। उसने स्वयं बन्दीगृह में जाकर अत्याचारों की जाँच की। किस परिस्थिति में गिरकर इतने आदमी विष खाकर मर गए, और दूसरे मरने को तैयार हैं, इस बात ने उसका ध्यान आकर्षित किया। इस सामूहिक आत्मघात के भीतर मसऊद का अनौचित्य, अविचार और लम्पटता देख वह क्रोध से आगबबूला हो गया। उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे आज उसका वंश कलंकित हो गया। उसने खुला दरबार किया।
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