उन्मत्त जनों से देखा, गंग सर्वज्ञ तेजी से बढ़े हुए भीतर आ रहे हैं, उनके पीछे नंगी तलवार हाथ में लिए भीमदेव हैं।
जो जहाँ था, स्तब्ध रह गया। कुमार भीमदेव एक ही छलांग में रुद्रभद्र को धकेल चौला के निकट जा पहुँचे। उन्होंने झटपट अपना उत्तरीय उसपर डाल दिया। चौला लपककर भीमदेव के पीछे लड़खड़ाती आ खड़ी हुई। रुद्रभद्र ने पास रखा भारी त्रिशूल उठाकर कुमार भीमदेव पर प्रहार किया। गंग सर्वज्ञ युवक की पुकार सुन उसे बंधन-मुक्त करने में उलझ गए थे। अब उन्होंने कड़ककर कहा, "खबरदार भद्र!" और दूसरे ही क्षण युवक ने उछल कर उसका गला धर दबाया। रुद्रभद्र में असीम बल था, वह प्राणप्रण से युवक से भिड़ गया। कभी युवक और कभी रुद्रभद्र नीचे-ऊपर होने लगे। इस बीच में सब उपासक भाग गए। भीमदेव ने युवक को रुद्रभद्र से उलझता छोड़ चौला के वस्त्रों की व्यवस्था की। अन्त में रुद्रभद्र को लात-घूसों से अच्छी तरह रौंद कर, युवक ने उसे सीढ़ियों से नीचे धकेल दिया। मार और नशे से अचेत होकर रुद्रभद्र टूटे खम्भे के समान भूमि पर पड़ा रहा। गंग ने मन्दिर के पट बन्द कर दिए और 'सब कोई मन्दिर त्याग कर बाहर चले जाओ' यह आदेश दिया। मूर्छित रुद्रभद्र के शरीर को पाश्र्वग उठा ले गए। आगे गुरुदेव, बीच में चौला, पीछे भीमदेव, उनके पीछे वह युवक, सब उसी गुप्त मार्ग की राह महालय में लौट आए।