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था। परन्तु इसके बाद मसऊद चिन्तित हो गया। उसने चाहा कि अमीर से कुछ कहे, पर उसका साहस न हुआ। कैदियों के निकट जाने का भी अब उसे साहस न होता था। यद्यपि उसने कंचनलता पर कोड़े बरसवाए थे, पर सच पूछिए तो वे कोड़े उसी की पीठ पर पड़े थे। उसकी भूख-प्यास-नींद सब उड़ गई थीं। पर उस कोमल कुसुम-कली के प्रति किए हुए अपने निर्मम व्यवहार के लिए अपने को धिक्कार दे रहा था। वह उसे देखना चाहता था, परन्तु निकट जाने का साहस नहीं करता था। जब उसने सुना कि कोड़े खाकर वह मरी नहीं, जीवित है, उसने उसकी मरहम-पट्टी और खाने-पीने की समुचित व्यवस्था कर दी। परन्तु कैदियों ने भोजन करना स्वीकार नहीं किया। मसऊद इससे डर गया। पुरुष कैदियों में निर्भयता, उद्दण्डता औरा क्रोध की भावना बढ़ती जाती थी। बहुत यत्न करने पर भी कैदियों की भीतरी दशा बाहर अनेक रूप धारण करके फैलती जा रही थी, जिससे नगर में अशान्ति का वातावरण बढ़ रहा था। स्त्रियों ने अब एक जोरदार कदम उठाया। उन्होंने निर्णय किया कि इस प्रकार से नंगी होकर कोड़े खाने से मर जाना अधिक उत्तम है। कंचनलता अभी तक बहुत कमज़ोर थी। परन्तु अब सब स्त्रियों का नेतृत्व रुक्मिणी नामक एक सोरठ महिला कर रही थी। उसने कहा, “बहिनों, कंचन बहिन की प्रतिष्ठा पर हमें बलि होना होगा। कहो, कौन अपने प्राण देने को उद्यत है?" तत्काल सैकड़ों हाथ उठ गए। उनमें से बीस स्त्रियों को चुना गया। अनेक युक्तियों से बहुत-सी अफीम मँगाई गई और बीसों स्त्रियाँ शान्तिपूर्वक अफीम खाकर चिरनिद्रा में सो गईं। इस प्रकार बीस कैदी स्त्रियों का एक ही रात में आत्मघात करने का समाचार सुनकर मसऊद की पिण्डलियाँ काँप गई। वह भागा हुआ बन्दीगृह में आया। वह नहीं चाहता था कि बाहर यह बात फैले और अमीर तक पहुँचे। उसने उनके शवों को बन्दीगृह में गाड़ दिया तथा स्त्रियों को बहुत भाँति तसल्ली दे भोजन करने का आग्रह किया। परन्तु स्त्रियों ने स्वीकार नहीं किया। अब इस आत्म-यज्ञ में स्त्रियों का साथ देना पुरुषों ने भी आवश्यक समझा। तत्काल ही स्वेच्छा से मरने वालों की सूची बनाई जाने लगी। सूची आवश्यकता से बहुत अधिक लम्बी हो गई। परन्तु उनमें से केवल अस्सी व्यक्ति उस दिन मरने के लिए चुने गए। शेष लोगों ने उनके निकट बैठकर भोजन न करने की ठान ली। इस बार भी बहुत-सी अफीम मँगा ली गई। और अस्सी जनों ने धैर्यपूर्वक अफीम खा ली। वे चुपचाप बिस्तर पर लेट गए। बाकी लोग उन्हें घेर कर भजन-कीर्तन करने लगे। हज़ारों कण्ठों के सम्मिलित स्वरों ने बन्दीगृह की दीवारों को कम्पायमान कर दिया। बन्दियों के इस आत्मोत्सर्ग के उदाहरण से दूसरे बन्दियों पर बड़ा भारी प्रभाव पड़ा। उनमें प्रेम, भक्ति और सहानुभूति तथा आत्मसम्मान का जोश हिलारें मारने लगा। वे भी ज़ोर-ज़ोर से कीर्तन करने लगे। थोड़ी ही देर में जिन्होंने अफीम खाईं थी, उनके सिर दर्द से फटने लगे। उस विकट वेदना को किसी भाँति सहन न कर वे छटपटाने लगे। उनकी नसें खिंचने लगीं। देह अकड़ने लगी और आँखों की कौड़ियाँ बाहर निकल आईं। सब लोग अपने साथियो का यह घोर उत्सर्ग पत्थर की छाती करके देख रहे थे। बहुत जन आँखों से चौधार आँसू बहाते जाते थे और भजन गाते जाते थे।