परन्तु गुप्तचरों से उन्हें इतना ज्ञात हो गया था कि चौलादेवी खम्भात में थीं, और वहाँ के दुर्ग से अमीर ने उसे प्राप्त किया है। महाराज भीमदेव सकुशल आबू पहुँच चुके थे, परन्तु उन्होंने भी चौलादेवी के सम्बन्ध में चण्ड शर्मा को कुछ न लिखा था, इसलिए अधिक तो नहीं, पर आंशिक रूप से वह चौलादेवी के सम्बन्ध में कुछ जिज्ञासा अवश्य रखते थे। और उन्होंने अपनी एक गुप्त आँख निश्चित रूप से उस नकली चौलादेवी पर स्थापित कर रखी थी। जो हिन्दू दासियाँ यहाँ शोभना की सेवा में रखी गई थीं, वे सब चण्ड शर्मा द्वारा ही भेजी गई थीं। अमीर चण्ड शर्मा को अपना अनुगत कर्मचारी समझ कर, पाटन में अपनी सब आवश्यकताओं को चण्ड शर्मा के द्वारा ही पूर्ण कराता था। और इसी कारण एक दर्जन से भी अधिक दासियाँ चण्ड शर्मा को चौलारानी के पास पहुँचानी पड़ी थीं, परन्तु शोभना ने इन दासियों के सम्मुख भी अपना भेद खोला नहीं था। और वे नहीं जानती थीं कि उनकी स्वामिनी कौन है। वे यही जान पाई थीं कि वह सोमनाथ महालय की नर्तकी है, जो अमीर की प्रतिष्ठित बन्दिनी है। चण्ड शर्मा भी इतनी ही बात जान पाए थे। अलबत्ता उन्होंने उसका नाम भी जान लिया था और अपने गुप्त संदेश में यह संदेश भी आबू भेज दिया था कि अमीर के साथ चौला नाम की सोम-महालय की एक नर्तकी भी बन्दिनी है, जिसे उसने रानी की भाँति दरबारगढ़ के ज़नाने राजमहल में ठाठबाट से रखा हुआ है। इस प्रकार पाटन में अमीर की सवारी को आए केवल तीन ही दिन व्यतीत हुए थे, कि इतने ही काल में पाटन नई-नई-हलचलों से भर गया था। चण्ड शर्मा बहुत व्यस्त हो उठे थे। उनपर दुहरा भार था। वही पाटन की कूटनीति के एकमात्र संचालक थे। उनका बहुत समय अमीर की सेवा में व्यतीत होता था, उन्होंने अमीर के सब सुख-साधन जुटाकर उसे प्रसन्न कर लिया था, और अब वह नगर-व्यवस्था सम्बन्धी सारी ही बातें चण्ड शर्मा ही की अनुमति से करता था। एक प्रकार से वह चण्ड शर्मा पर निर्भर था। दो दण्ड रात्रि जा चुकी थी। चण्ड शर्मा गढ़ से अमीर को आखिरी सलाम करके लौटे थे। उन्होंने देखा, एक सवार उनके पीछे घोड़ा दौड़ाता चला आ रहा है। उन्होंने अपना घोड़ा रोक दिया, पास आने पर देखा, वह एक तुर्क सवार है। चण्ड शर्मा ने कहा- “तुम क्या चाहते हो?" “मुझे अमीर नामदार ने हुक्म दिया है, कि मैं आपका हमराह रहकर हिफाज़त से आपको आपके घर पहुँचा दूँ, इससे सेवा में हाज़िर हो रहा हूँ।" “मुझे डर क्या है, मुझे तो तुम्हारी कुछ भी ज़रूरत नहीं है।" "बहुत ज़रूरत है, आप दुहरी चाल चल रहे हैं और खतरे से बेखबर हैं।" चण्ड शर्मा सिपाही के मर्मभेदी वाक्य सुनकर घबराए। उन्होंने कहा- “दुहरी चाल से तुम्हारा क्या मतलब है?" “आप घर चलिए, वहीं कहूँगा।" “यहीं कहो।' चण्ड शर्मा नै म्यान से तलवार निकाल ली। पर तुर्क सरदार ने हंस कर कहा, “इसकी क्या आवश्यकता है शर्मा जी, चलिए, घर चलिए। मुझे आपसे कुछ खानगी बातचीत करनी है।" शर्माजी अपनी उत्तेजना पर लज्जित हुए।तलवार म्यान में रखकर बोले," देखता हूँ, तुम कोरे सिपाही ही नहीं हो।"
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