दरबारगढ़ में ग्यारह दिन की मंज़िल पूरी कर, अमीर अपने लाव-लश्कर सहित अनहिल्ल- पट्टन पहुँचा। जहाँ उसका सेनापति मसऊद, गुरु अलबरूनी, वज़ीर अब्बास के साथ उपस्थित था। पाटन से नगरपाल चण्ड शर्मा ने नगर-द्वार पर उसकी अभ्यर्थना की और आदर- सत्कार से उसे दरबारगढ़ में ले आए। दरबारगढ़ में आकर अमीर ने एक दरबार किया और नगर में अपने नाम की आन फेरकर ढंढोरा फिराया, कि प्रजा की जान-माल का हिन्दू-राज्य की भाँति रक्षण होगा, सब लोग हाट-बाज़ार खोलें, और अपने-अपने काम-रोज़गार में लगें। यद्यपि यह ढंढोरा चण्ड शर्मा के उद्योग का परिणाम था, और इससे नगरजनों की घबराहट कुछ कम हुई परन्तु अमीर के बर्बर सैनिकों ने बाज़ार में अन्धेरगर्दी मचा दी। वे चाहे जिसकी जो वस्तु उठा ले जाते थे। मोल का पैसा नहीं देते थे, गृहस्थियों के घरों से गाय-बकरी-भेड़ खोल ले जाते और काट-पीट कर हंडिया चढ़ाते। कोई बहू-बेटी अपना द्वार नहीं खोल सकती थी। लोगों ने अपना धन-रत्न मँहरों में दबाकर छिपा दिया था। बहुत कम दुकानें खुलतीं, बहुत कम कारोबार होता था। चण्ड शर्मा उधर अमीर का मिज़ाज संतुलित रखते, इधर नगरजनों को शान्त रखते। उनकी नीति नगर की कम-से-कम हानि उठाकर अमीर को पाटन से बिना लड़े-भिड़े निकाल बाहर करने की थी। अमीर अब लड़ने के मूड में न था। उसकी सेना थक गई थी और बल बिखर गया था। अपनी मुहिम वह पूरी कर चुका था और अब केवल अपनी थकान उतार रहा था। फिर प्यार के घाव से भी वह पीड़ित था। जिस शोभना को वह चौला देवी समझे हुआ था, वह अभी तक अपना भेद छिपाए हुए थी। उसको डेरा राजमहलों में ही दिया गया था, और दर्जनों दास-दासी उसकी सेवा में नियत किए गए थे। वह उससे मिलने को छटपटा रहा था। पर शोभना ने कहला भेजा था, “आप यदि तलवार हाथ में लेकर आते हैं, तो आप अपने और मेरे मालिक हैं, अब चाहे आइए, परन्तु यदि मेरी धर्म-मर्यादा कायम रखना चाहते हैं, तो मैं देवानुष्ठान कर रही हूँ। मेरी इच्छा है, जब तक भारत भूमि पर आप हैं, मेरे निकट न आइए। आपके मुल्क में मैं आपका दिल से स्वागत करूँगी।” महमूद गर्म खून का युवक न था, प्रौढ़ पुरुष था। शोभना का अनुरोध उसने सादर स्वीकार कर लिया और वह विरह की मीठी अनुभूति करता रहा। फिर भी वह प्रतिदिन दो बार सुबह-शाम अपना खास गुलाम उसके पास भेजकर उसकी खैराफियत मँगा लेता था। चण्ड शर्मा अत्यन्त प्रच्छन्न भाव से आबू से अपना सम्बन्ध स्थापित किए हुए थे। वे सिद्धस्थल में दुर्लभदेव की एक-एक गतिविधि को देख-भाल कर उसका रत्ती-रत्ती हाल विमलदेव शाह को भेज रहे थे। उन्हें यहाँ अमीर के आते ही पता लग चुका था कि सोमनाथ की देवदासी चौलादेवी अमीर के साथ है, और अमीर ने उसे एक राजरानी की भाँति पाटन के राजमहलों में रख छोड़ा है। यद्यपि उन्हें चौलादेवी का विस्तृत हाल ज्ञात नहीं था और यह भी वह नहीं जानते थे कि महाराज भीमदेव के साथ उसका गुप्त-विवाह हो गया है।
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