पाटन की ओर फतह मुहम्मद का अपनी प्रेयसी को लेकर इस प्रकार एकाएक गायब हो जाना अमीर महमूद की समझ ही में न आया। शोभना के कौशल की उसने कल्पना भी न की थी। अमीर फतह मुहम्मद पर बहुत खुश था। उसी की सहायता से उसे यह महत्त्वपूर्ण विजय प्राप्त हुई थी। अब, इस समय जब कि उसे बड़े से बड़े इनाम की आशा थी, वह क्यों और कैसे वहाँ से गायब हो गया। बहुत-सी कल्पनाएँ अमीर ने की। गोइन्दे छोड़े, परन्तु फतह मुहम्मद का सुराग न लगना था, न लगा। अब व्यर्थ खम्भात में समय नष्ट न कर उसने सब लश्कर लेकर पाटन की ओर कूच किया। उसे लूटे हुए उस अटूट धन की बहुत चिन्ता थी, जिसे वह सेनापति मसऊद और अपने उस्ताद अलबरूनी की देख-रेख में पाटन भेज चुका था। वह अपनी मूल सेना से भी देर तक पृथक् रहना नहीं चाहता था। वहाँ यद्यपि उसे विजय मिली थी और उसकी समझ से उसकी प्राणों से प्रिय चौला देवी भी उसके हाथ आई थी, परन्तु उसने पहली बार ही अपनी सत्रह विजय यात्राओं में निरीह नागरिकों का जमकर मुकाबला करने का सत्साहस देखा था। इससे वह भयभीत हो गया था। उसकी प्रधान मुहिम फतह हो चुकी थी, उसके प्रत्येक सिपाही के ज़ीनों में सोना-चाँदी, और ज़र-जवाहर भर चुके थे। अब किसी का मन लड़ने में नहीं, अपने घर लौटकर मौज-मज़ा करने में था। अपने बर्बर सिपाहियों की मनोवृत्ति वह खूब समझता था, तथा इन भेड़ियों को पालने का ढंग भी वह जानता था। इससे उसने लौटने में देर करना ठीक नहीं समझा। शोभना ने जिस शान और शालीनता से उससे वार्तालाप किया था, उसने उसकी हृत्तन्त्री के तारों को झंकृत कर दिया था। जीवन में पहली ही बार उसने समझा कि किसी औरत पर काबू पाना और चीज़ है, पर उसका प्यार पाना बिलकुल जुदा चीज़ है। महमूद पढ़ा-लिखा अधिक न था। पर कवित्व के मर्म को जानता था। भावुकता उसमें थी। फिर उसका यह वार्धक्य था, जब हृदय स्वभावत: कोमल और भावुक हो उठता है। जीवन में पहली बार उसने एक औरत के सामने आत्मार्पण करने के स्वाद का अनुभव किया था। उसका मन प्यार की पीड़ा से कोमल और भावुक हो रहा था। इस समय फतह मुहम्मद को निकट पाने के लिए वह बेचैन हो उठा था। वही उसका इस समय सबसे बड़ा समर्थ सलाहकार और सेनानायक था। दूसरा समय होता तो वह उसके इस प्रकार गायब होने पर सन्देह करता, परन्तु इस समय वह अधिक सोच-विचार नहीं कर सकता था। उसने ख्वाजा अब्बास अहमद को बुलाकर अपनी चहेती मलिका की सवारी के सम्बन्ध में सब आवश्यक आदेश दिए, और कैदियों के काफिले को आगे कर कूच बोल दिया। लश्कर में सबसे आगे बाजा-गाजा-घौंसा और निशान का हाथी था। उसके पीछे ऊँटनियों पर तुर्क तीरन्दाज़ थे। इसके पीछे अब्बास अपने पाँच सौ सवारों के बीच शोभना रानी को ले जा रहा था। शोभना की सवारी एक दिग्गज हाथी पर थी, जिस पर सुनहरी अम्बारी कसी थी।
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