तेल देखो, तेल की धार देखो! महाराज भीमदेव का घायल और अरक्षित अवस्था में खम्भात में रहना दामोदर महता को असंगत लगा। कूटनीति का यह पण्डित महाराज और महारानी चौला देवी दोनों ही को खतरे में डालना पसन्द नहीं करता था। पर प्रश्न निष्ठा और प्रतिष्ठा का था। न तो महाराज भीमदेव ही प्राणों के मोह से खम्भात को अरक्षित छोड़ने को राजी हो सकते थे, न चौला रानी ही उन्हें छोड़कर जा सकती थी। दामोदर महत्ता की दृष्टि में सम्भात की रक्षा से अधिक महत्त्व का प्रश्न राजा और रानी की रक्षा का हो उठा। दुर्ग, नगर और राजा-रानी, तीनों की रक्षा का प्रश्न था। प्रश्न अत्यन्त गम्भीर था। योद्धा और युद्ध सामग्री की तो कमी थी ही, निरन्तर पराजित होने के कारण उनमें साहस की भी बहुत कमी हो गई थी। दामोदर महता भग्न-हृदय सेना की कठिनाई से असावधान न थे। अतः अब उन्होंने ही सबसे अधिक साहस करने की ठान ली। परन्तु न तो महता को, न बालुकाराय ही को यह विश्वास था कि शत्रु इतनी शीघ्रता से उनके सिर पर आ टूटेगा। जिस दिन यह मन्त्रणा हुई, उसके दूसरे दिन ही गनगौर का त्यौहार था। त्यौहार में हँसते-खेलते नर-नारियों पर दैत्य टूट पड़ा। राजपूत सेना के सावधान होने तक वह तीन करारी मार कर चुका था। नगर-द्वार पर गनगौर के मेले में बिखरे हुए नर-नारियों को उसने काट डाला। अचलेश्वर देवालय भंग कर नृसिंहस्वामी और सब पुजारियों को भी मार डाला, तथा आसकरण सेठ के देसावर में आए सेठियों को भी बन्दी कर लिया। विद्युत्वेग की भाँति यह खबर दुर्ग में पहुँची। जल्दी-जल्दी आवश्यक आदेश देकर, सामन्त को सेना-सहित दुर्ग से बाहर नगर-कोट पर भेज दिया गया। फिर बालुकाराय से आवश्यक परामर्श करके दामो महता घोड़ा दौड़ाते स्वयं एकाकी ही नगर की ओर दौड़े। दुर्ग-द्वार बन्द हो गया। खाई का पुल तोड़ दिया गया। सामन्त को अधिक से अधिक सहायता पहुँचाना ही दामो महता का उद्देश्य था। सामन्त को उसने समझा दिया था कि जमकर युद्ध न करे। गली-कूचों में मार-काट करते बलूची सवारों पर बगल से टूट कर आक्रमण करे। दबाव होने पर भाग जाए। मकानों और वृक्षों की आड़ में, मौके की ताक में दस-दस, पाँच-पाँच आदमियों की टोलियाँ छिपा दे। साहस की प्रेरणा करके नगर-निवासियों को भी भागने से रोककर शत्रु पर आक्रमण में सहायता करने की चेष्टा करे। सामन्त ने यही युद्ध-नैपुण्य अपनाया। जगह-जगह सारे नगर में उसके योद्धा बिखर-बिखरकर नगर-जनों से सहयोग लेकर बगल से शत्रुओं पर आक्रमण करने लगे। इसका फल भी उत्तम हुआ। शत्रुओं की गति रुक गई। वे चौकन्ने होकर चलने लगे। नगर-जनों में साहस बढ़ा। दामो महता अब गली-कूचे पार करते हुए किसी तरह बन्दी सेठियों में मिल गए। सेठ लोग दण्ड देने की चर्चा चला रहे थे। दामोदर ने बातचीत शुरू की। एक सेठ ने कहा, “पाँच करोड़ कोरी बहुत है, इतना दण्ड दे कहाँ से सकते हैं?" दूसरे ने कहा, “देना चाहें तो भी नहीं दे सकते। कोरी क्या हमारे पास यहाँ परदेश
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