कुसम्वाद
गंग सर्वज्ञ स्वस्थ होकर आसन पर बैठे। उनके सामने दूसरे आसन पर भीमदेव बैठे।
युवराज ने कहा, "भगवन्, यह तो ठीक नहीं हुआ।" सर्वज्ञ ने पूछा, "क्या?"
"आपने म्लेच्छ को अभय दिया, चिरंजीव रहने का आशीर्वाद दिया...और सकुशल चला जाने दिया।" सर्वज्ञ हँस दिए। उन्होंने कहा, "अच्छा क्यों नहीं हुआ कुमार?"
"हाथ में आए शत्रु को छोड़ना अच्छा है?"
"पर शत्रु कौन है?"
"प्रभो! मैं यह सब वेदान्त विचार नहीं कर सकता, पर गज़नी का यह दैत्य यदि सोमपट्टन को आक्रान्त करे तो?"
"तो?"
"तो महाराज, गुजरात का गौरव भंग होगा।"
"क्यों?"
गंग सर्वज्ञ के प्रश्न का उत्तर युवराज भीमदेव नहीं दे सके।
वे सर्वज्ञ का गरिमापूर्ण मुख देखते रह गए।
गंग सर्वज्ञ ने हँस कर कहा, कुमार, यदि गज़नी का सुलतान सोमपट्टन पर अभियान करे तो गुजरात का गौरव भंग होगा, यह तुम प्रथम ही से कैसे कहने लगे? यदि वह अभियान करे तो गुजरात का गौरव बढ़े क्यों नहीं?"
भीमदेव लज्जित हुए। उन्होंने कहा, "गुरुदेव, सोलह बार इस दैत्य ने तीस बरस से भारत को अपने घोड़ों की टापों से रौंदा है। हर बार इसने भारत को तलवार और आग की भेंट किया है।"
"तो इसमें क्या इसी अमीर का दोष है कुमार, तुम्हारा, देशवासियों का कुछ भी दोष नहीं है? कैसे एक आततायी इतनी दूर से दुर्गम राह पार करके, धन-जन से परिपूर्ण, शूरवीर राजाओं और क्षत्रियों से सम्पन्न भारत को सफलतापूर्वक आक्रान्त करता है, धर्मस्थलों को लूट ले जाता है, देश के लाखों मनुष्यों को गुलाम बनाकर बेचता है, परन्तु देश के लाखों-करोड़ों मनुष्य कुछ भी प्रतीकार नहीं कर पाते। तुम कहते हो, तीस बरस से यह सफल आक्रमण कर रहा है। उसके सोलह आक्रमण सफल हुए हैं। फिर सत्रहवाँ भी क्यों न सफल होगा, यही तो तुम्हारा कहना है? तुम्हें भय है कि इस बार वह सोमपट्टन को आक्रान्त करेगा। फिर यह भी भय है कि यदि वह ऐसा करेगा तो गुजरात का गौरव भंग होगा। तुम्हारे इस भय का कारण क्या है? क्या अमीर का शौर्य? नहीं, तुम्हारे भय का कारण तुम्हारे ही मन का चोर है। तुम्हें अपने शौर्य और साहस पर विश्वास नहीं। कहो तो, इसका गज़नी यहाँ से कितनी दूर है? राह में कितने नद, वन, पर्वत और दुर्गम स्थल हैं? सूखे मरुस्थल हैं, जहाँ प्राणी एक-एक बूँद जल के बिना प्राण त्यागता है। ऐसे विकट वन भी हैं, जहाँ मनुष्य को राह नहीं मिलती। फिर उस देश से यहाँ तक कितने राज्य हैं? मुलतान है,