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मदनजी सेठ और देवचन्द्र जैसे थे, वैसे ही नंगे-पैर मन्दिर की ओर दौड़ चले। महाजनों ने बाहर आकर देखा-सैकड़ों ब्राह्मण भागते-चिल्लाते दौड़े चले आ रहे हैं। उनमें से बहुतों के वस्त्र लोहू में तर हैं। उनके पीछे घुड़सवार पठान सैनिक घोड़े दौड़ाते, भागते ब्राह्मणों की नंगी पीठ पर तलवारों और बर्छियों से घाव करते, दबाए चले आ रहे हैं। सबके आगे कीमती घोड़े पर सवार फतह-मुहम्मद हाथ में रक्त-भरी नंगी तलवार हवा में उछलाता आ रहा है। देखते ही देखते इन बर्बर सैनिकों ने महाजनों को घेर लिया। सैकड़ों लपलपाती खूनी तलवारें हवा में ऊँची हुईं। तिलक हज्जाम भी रक्त-वस्र पहने फतह मुहम्मद के साथ एक अच्छे घोड़े पर सवार था। उससे फतह मुहम्मद ने कहा, “ये सब अमीरज़ादे सेठिया हैं, सब लखपति- करोड़पति हैं, इन्हें मारने की अपेक्षा कैद करना अच्छा है। इनके छुटकारे की भारी रकम अमीर को मिलेगी।" इतना कहकर उसने सवारों को रक्तपात करने से रोक दिया। और सबको बन्दी करने की आज्ञा दे दी। देखते ही देखते देश-देश के सब सुकुमार, श्रीमन्त, सेठ बन्दी हो गए। भागते हुए ब्राह्मण भी घेर लिए गए। इसी समय देवचन्द्र वहाँ आ गया। उधर बलूची सवारों ने सेठ के घर को राई रत्ती लूट लिया। और सबको बाँधकर ले गए। सेठ की नवकिसलय सुकुमारी कुमारी कंचनलता को भी घर में से घसीटकर उन्होंने बाँध लिया। सेठ-पत्नी मूर्छित हो भूमि पर पड़ी रह गई।