वियोग–संयोग , खम्भात के दुर्ग का पच्छिमी भाग समुद्र की ओर था।उसी दिशा में एक छोटा-सा महल भूरे पत्थर का अति प्राचीन बना हुआ था। कहते हैं कि उस महल को वल्लभीपुर के महाराज शिलादित्य ने निर्माण कराया था। महल सुन्दर और कलापूर्ण था। और उसमें आठवीं-नवमी शताब्दी की भव्य स्थापत्य-कला का प्रदर्शन था। इसी महल में चौला को रखा गया था। शोभना उसकी प्रधान सहचरी के रूप में उपस्थित थी। पाठक भूले न होंगे कि उसे फतह मुहम्मद ने चौला पर जासूसी के लिए नियत किया था। परन्तु शोभना वास्तव में बड़े ही स्वच्छ हृदय की युवती थी। उसका मन बहुत ही भावुक और कोमल एवं सरल था। चौला के सौन्दर्य, उदारता और कोमल भावुकता से शोभना का मन मेल खा गया था और वह सच्चे मन से उसे प्यार करने लगी थी। वह उसकी उदास, आँसुओं से भरी आँखें, बेचैनी से करवटें बदलती हुई रातें आँखों से देख चुकी थी। वह देखती थी, चौला घण्टों निःस्पन्द बैठी सुदूर समुद्र की तरंगों के उस ओर देवपट्टन को अनिमेष भाव से देखती रहती है। फिर लम्बी साँस खींच सिक्त आँखें पोंछ लेती हैं। वह बहुत कम बोलती, बहुत कम खाती, बहुत कम सोती और बहुत कम अपनी आवश्यकताएँ दूसरों को बताती है। परन्तु शोभना छाया की तरह उसके साथ रहती। कभी-कभी वह नाच-गाकर उसे खुश करने की चेष्टा करती, हँसती-हँसाती। उसके सरल व्यवहार और आनन्दी स्वभाव को देख, कभी-कभी चौला मुस्करा देती। कभी कहती-बहिन, इतना कष्ट क्यों करती हो। कभी- कभी जब वह बरजोरी शोभना को बरजती तो वह मुँह फुलाकर रूठ जाती। चौला को उसे मनुहार करके मनाना पड़ता, तो वह खिलखिलाकर हँस पड़ती। कभी वह विचारती, 'क्यों देवा ने उसपर दृष्टि रखने को कहा है, क्यों गज़नी का अमीर उसपर नज़र रखता है। अवश्य ही उसकी नज़र अच्छी नहीं है।' देव स्वामी को वह प्यार करती थी, और उस प्यार की झोंक में उसे उसका मुसलमान होना भी नहीं खला था। धर्म-शत्रु गज़नी के अमीर का अनुवर्ती होना भी उसे बुरा न लगा था। परन्तु वह किसी रूप में चौला का अनिष्ट करे, यह वह नहीं सह सकती थी। उसने मन-ही-मन चौला की प्रत्येक मूल्य पर संकट-काल में रक्षा करने की ठान ली। सोमनाथ के पतन के समाचार दुर्ग में पहुँच चुके थे। वह सोच रही थी, ‘क्यों उस सर्वग्रासी अमीर की सेवा देवा करता है।' वह निश्चय कर चुकी थी कि यदि इस बार देवा से मुलाकात हुई तो वह कहेगी, कि वह उस धर्मद्रोही का साथ छोड़ दे, और महाराज भीमदेव की सेवा में रहकर आततायी का सामना करे! महाराज भीमदेव के साथ चौला का धर्म-विवाह देव-सान्निध्य में हो चुका है, यह बात अभी उसे नहीं मालूम थी। परन्तु महाराज भीमदेव के प्रति चौला के विरह-वैकल्य को वह ठीक-ठीक समझ गई थी। वह भुक्त-भोगिनी थी। इससे उसके मन में चौला के प्रति यथेष्ट सहानुभूति थी। खम्भात का किलेदार सामन्तसिंह नियत किया गया था। और उसने चौला को महारानी की भाँति रहने की सब सम्भव व्यवस्था कर दी थी। वह नित्य सुबह-शाम
पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२७८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।