छत्र-भंग द्वारिका-द्वार को पार कर जो तुर्कों के दल-बादल कोट में घुस आए थे, वे प्राचीरों पर चढ़कर बुर्जी पर दखल करने लगे। कमा लाखाणी की तनिक-भी आन न मानकर अमीर के कछुए इस पार आ रहे थे और नसैनी लगा-लगाकर कोट पर चढ़ रहे थे। जो कोट पर पहुँच चुके थे, वे एक हाथ से तलवार चला रहे थे, दूसरे से आने वालों को सहायता दे रहे थे। लड़ाई चौमुखी हो रही थी। लाशों से जल-थल पट गए थे। सिंहद्वार पर जूनागढ़ के राव अपने काठियावाड़ी योद्धाओं की अडिग दीवार बनाए लोथों का पहाड़ बना रहे थे। बड़े-बड़े कद्दावर तुर्क अपनी दाढ़ी दाँतों में भींच दुहरी तलवार फेंक रहे थे। उधर बलोची सवारों के दस्ते गहरा धंसारा कर रहे थे। द्वार की बहुत ही दुर्दशा हो चुकी थी और अब वह किसी भी क्षण गिर सकता था। ऊपर-नीचे चारों और हज़ारों तलवारें छा रही थीं। नीचे चींटियों की कतार की भाँति हठी तुर्क योद्धा पल-पल पर बढ़े आ रहे थे। राजपूत उन्हें पीछे धकेल रहे थे। वृद्ध राव नवधन शत्रुओं से गस गए थे। उन्होंने आँख उठाकर चारों ओर देखा, मन में समझा, आज ही प्रलय का क्षण उपस्थित हो गया प्रतीत होता है। गुर्जर योद्धा असीम पराक्रम दिखाने लगे। अब बाण, तलवार, गदा और कुश्ती का हाथों-हाथ युद्ध हो रहा था। मध्य एशिया के प्रचण्ड योद्धाओं की अजेय सेना लिए अमीर, सिंहद्वार पर तलवार ऊँची किए खड़ा था। राव ने अमीर को देखा, उन्होंने सोचा, क्यों न दो-दो हाथ इस गज़नी के दैत्य से कर लिए जाएँ। फिर कैलास-वास तो होना ही है। उन्होंने तलवार सम्भाली और अमीर को ललकारते हुए कोट से कूदने को तैयार हुए। कच्छी योद्धा 'बापू-बापू' कर-करके दौड़ पड़े। परन्तु इसी समय अन्तरायण से अल्लाहो- अकबर का विकट नाद उठा, और मायामूर्ति की भाँति भीतर कोट से तुर्क योद्धा निकलकर पीछे से मार करने लगे। जब तक कि राजपूत संभलें कि फतह मुहम्मद ने उनके सिरों पर छलांग मारी और बिल्ली की भाँति उछलकर द्वार खोल दिया। नदी के प्रवाह की भांति शत्रु जय-निनाद करते हुए भीतर घुस चले। राव ने देखा तो असंयत हो उधर दौड़ पड़े। परन्तु जैसे तिनका भंवर में पड़कर टुकड़े-टुकड़े हो जाता है, उसी प्रकार तिल-तिल कर वे खेत रहे। राजपूतों में हाहाकार मच गया। अब युद्ध की कुछ व्यवस्था न रही। दो-दो चार- चार योद्धा दल बांधकर लड़ने लगे। चारों ओर पुकार मच गई, ‘अन्तर्कोट ! अन्तर्कोट !' और बचे-खुचे योद्धा सिमटकर अन्तर्कोट की ओर दौड़ चले। राहबाट सब लाशों में भर गए। मरते हुओं के आर्तनाद, योद्धाओं के चीत्कार और घोड़ों तथा हाथियों की चिल्लाहट से वातावरण अशांत हो उठा। फतह मुहम्मद ने अमीर की रक़ाब चूमकर अमीर का स्वागत किया। फिर वह उछलकर घोड़े पर चढ़ा, और अमीर के आगे-आगे तलवार की धार से राह बनाता चला। अमीर अपने विशाल काले घोड़े पर सवार अपनी अप्रतिहत वीर वाहिनी के दल-बादल लिए महालय की सिंह-पौर में धंसा।
पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/२५८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।