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मोट में छलांग मारने से हुए तुमुल नाद ने उनका ध्यान उधर खींचा। और वे घोड़ा दौड़ाते उधर दौड़ पड़े। हवा में उछलते महाराज के अश्व की एक झलक उन्होंने देखी थी। वे जब तक मोर्चे पर पहुँचें, बालुकाराय साहस का परिचय दे चुके थे। उन्होंने द्वार खोल दिया था और उनकी विकटवाहिनी द्वार के बाहर जा रही थी। कोट से योद्धा तलवार ऊँची किए दबादब मोट में महासेनापति के चारों ओर कूद रहे थे। दामो महता ने कोट के कंगूरे पर चढ़कर इस विकट युद्ध को देखा। उनके देखते- देखते ही महाराज और दद्दा का मूर्च्छित क्षत-विक्षत शरीर बालुकाराय ने अधिकृत करके कोट की ओर मुँह मोड़ा। यद्यपि उन पर महान् संकट था, परन्तु दामो महता उसे देखने रुके नहीं। वे पीछे लौटे। वे जूनागढ़-द्वार के निकट तक आ गए। यहाँ अब, मरे और अधमरे शत्रु-मित्रों के ढेर पड़े थे। युद्ध का दबाव यहाँ बहुत कम हो गया था। कमा लाखाणी बहुत घायल हो गए थे, पर वे बराबर मोर्चे पर डटे हुए थे। दामों ने उनके निकट पहुँचकर कहा, “वीरवर, जितने धनुर्धर योद्धा सम्भव हों, मोर्चे के पीछे जहाज़ पर भेजना प्रारम्भ कर दो!” लाखाणी ने मर्मभेदी दृष्टि से महता को देखकर कहा, “जैसी भगवान् सोमनाथ की इच्छा। महता, महासेनापति को मेरा जुहार कहना।" दोनों वीर पुरुषों ने गीली आँखों से एक-दूसरे को देखा, और अपने-अपने काम में लगे। महता अब सिंहद्वार की ओर फिरे। यहाँ भारी घमासान युद्ध हो रहा था। धीर-वीर जूनागढ़ के राव बढ़-बढ़कर हाथ मार रहे थे। महता को देखकर उन्होंने चिल्लाकर कहा, "महता, महाराज का ध्यान रख भाया !" “महाराज के साथ बालुकाराय हैं अन्नदाता, उनकी चिन्ता न करें। यह भारी लोहा लेना तो आप ही का भाग है।" "महता, तुम भी जाओ, यहाँ तो मैं ही बहुत हूँ। आज म्लेच्छ से दिल खोलकर दो- दो हाथ करूंगा। अभी तो वह दूर है, वह हरी पगड़ी देखते हो न?” राव ने हँस कर तलवार की नोक उधर उठाई। “हाँ, बापू देख रहा हूँ। आप देवासुर-संग्राम कर रहे हैं। महाराज के लिए आपका कोई सन्देश है बापू?" “वे जिएं, म्लेच्छ का सत्यानाश देखने के लिए, और यह आज यदि मेरे हाथ से ज़िन्दा बच निकले तो अपने हाथ से इस धर्मद्रोही का शिरच्छेदन करें। भाया, मेरा यही सन्देश है। और सब को प्यार।" राव उधर से मुँह फेरकर युद्ध में लग गए, जैसे महता का माया-मोह सभी वे भूल गए। इस समय अमीर के सैनिक बड़ी-बड़ी जंजीरों से पुल को, सिंह-द्वार के प्रस्तर- स्तम्भों में अटका रहे थे। राव ने अपने योद्धाओं को ललकारा, “अरे, हमारे रहते यह क्या हो रहा है, वीरों, कूद पड़ो और पुल को तोड़ दो।” हज़ारों योद्धा कोट में कूद पड़े। ऊपर से जलते हुए तेल और भारी-भारी पत्थरों की बौछार की भरमार हो गई। अमीर के योद्धा पुल पर चढ़ आए, दोनों पक्षों ने बाणों से आकाश को पाट दिया। कच्छी योद्धा बड़ी-बड़ी रेतियाँ लेकर जंजीरों से चिमट कर जंजीरों को काटने लगे। ऊपर तलवारों के वार हो रहे थे, और