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विनाश का अग्रदूत धूर्त और महान् रणपंडित अमीर समूचे युद्ध-क्षेत्र पर अपनी गृद्ध-दृष्टि दिए सैन्य- संचालन कर रहा था। अभी उसकी सेना का मुख्य भाग तथा वह स्वयं, खाई के उस पार ही था। इधर राजपूत सभी मोर्चों में दबाव में पड़ गए थे। राजपूतों के मोर्चे जर्जर और अरक्षित हो रहे थे, पर सबसे भयानक बात तो महासेनापति का मूर्छित हो जाना था। कुटिल और प्रत्येक मूल्य पर विजय, केवल विजय ही प्राप्त करने का हौसला मन में रखने वाले अमीर को यह भास गया कि निर्णायक युद्ध का क्षण अब दूर नहीं है और उसने अविलम्ब अपनी योजना कार्यान्वित की। फ़तह मुहम्मद और सिद्धेश्वर उसकी रकाब के साथ थे। उसने फ़तह मुहम्मद की ओर भेदभरी दृष्टि से देखा और अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा, “अय नेकबख्त, यही वक्त है कि तू अपनी मुराद को पहुँच सकता है, क्या तू सबसे ज़बर्दस्त नाज़ुक मुहिम का सरदार बनकर इस बड़ी फ़तह का सेहरा अपने सिर पर बांधने को तैयार है?" फ़तह मुहम्मद ने आगे बढ़कर अमीर की रकाब चूमी। उसने कहा, 'आलीजाह, मेरे खून की प्रत्येक बूंद सब-कुछ कर गुज़रने पर आमादा है। मैं ज़िन्दगी को एक तिनके के समान समझता हूँ, हुजूर हुक्म दें।" उसने तलवार सूत ली। "तो जा, सिर्फ दो सौ मर-मिटने वालों को छांट लें। यह गुसाईं तुझे राह दिखाएगा। अब से दो घड़ी के भीतर उस बुलन्द दरवाज़े की पौर पर गज़नी के सुलतान का खुदा का बन्दा महमूद, वही कहूँगा जो मुझे कहना चाहिए। और मैं कहता हूँ कि वह दरवाज़ा आज से फतह-दरवाज़ा कहलाएगा। यह ले वह तलवार, जिसने सोलह बार फ़तह का पानी पिया है, पाक परवरदिगार और पैगम्बर इसे सत्रहवीं फतह तेरे हाथ से दे। जा, राह के हर रोड़े को रौंद डाल और अपनी राह साफ कर। तुझे इस तलवार के साथ वे सब हकूक मैंने दिए, जो अमीर महमूद को प्राप्त हैं। जा-जा, अलहम्हुलिल्लाह! राज़ की बात से तू अनजान नहीं।" युवक ने तलवार को दोनों हाथों में लेकर चूमा। एक नज़र उसने अमीर के चुने हुए योद्धाओं पर डाली। दो-सौ जीवट के वीरों को अपने पीछे आने का संकेत कर, सिद्धेश्वर के अश्व की लगाम अपने घोड़े के चारजामे से बाँध, तलवार की नोंक उसकी छाती पर रखकर कहा, “चलो गुसाईं।" सिद्धेश्वर इस दासी-पुत्र की स्पर्दा और दबंगता से कुढ़ गया। उसने घृणा से उसकी ओर देखा। फिर सुलतान से कुछ कहना चाहा। मगर सुलतान ने अपना रुख फेरकर पास खड़े मसऊद से कहा, “मसऊद, अब हमारी बारी है।” और ऐसा प्रतीत हुआ जैसे एकबारगी ही समूचा अचल हिमालय चल-विचल हो गया। ज्यों ही अमीर ने घोड़ा पानी उसके साथ ही तीस हज़ार योद्धा पानी में पैठ गए। अल्लाहो-अकबर के तुमुल नाद से महालय प्रकम्पित हो गया। महालय के सभी मोर्चों पर जूझते हुए राजपूतों के हाथ एक क्षण को रुक गए। शत्रु दल नया बल पाकर विद्युत-गति से आगे बढ़ा। इस्तकबाल कर। डाला,