अमीर ने युद्ध करने का कोई लक्षण प्रकट नहीं किया अथवा अमीर का कोई सैनिक भी दृष्टिगोचर नहीं हुआ, तो दामो महता अत्यन्त गम्भीर हो गए। वे सोचने लगे, 'क्या आनन्द के इस प्रकार एकाएक गायब हो जाने और अमीर के पीछे हटने में कोई तारतम्य है?' उनका यह विश्वास इसलिए और भी बढ़ गया कि फिर फतह मुहम्मद नहीं आया। रुद्रभद्र और सिद्धेश्वर के प्रति उनके सन्देह के भाव अवश्य थे। रुद्रभद्र के समूचे पाखण्ड में वे किसी गहरी कार्रवाई का अनुमान कर रहे थे। धीरे-धीरे इसी लक्ष्य बिन्दु पर उनका सारा सन्देह केन्द्रित हो गया। उन्होंने चुपचाप रुद्रभद्र और सिद्धेश्वर पर अपनी सैकड़ों आँखें स्थापित कर दीं। परन्तु दो दिन यों ही बीत गए कोई नई बात उन्हें नहीं दीख पड़ी। दैव-दुर्विपाक से संकटेश्वर की बावड़ी का भेद उनसे अज्ञात ही रह गया। कठिन उलझन को सुलझाने में दामो महता दूसरों को साझी नहीं बनाते थे। स्वयं ही उलझ-सुलझ कर निपट लेते थे। परन्तु अब, जब उन्हें कोई कोर-किनारा न मिला, तो उन्होंने बात का महत्त्व समझ कर सब बातें महासेनापति से कह डालना ही ठीक समझा। महता ने महाराज महासेनापति भीमदेव से एकान्त मुलाकात कर सारा विवरण उन्हें अथ से इति तक जा सुनाया। महता की अमीर से मुठभेड़, तलवार की मैत्री, फतह मुहम्मद और सिद्धेश्वर का षड्यन्त्र और आनन्द के एकाएक गायब हो जाने के समाचार सुनकर महाराज भीमदेव बहुत चिन्तित हुए। उन्होंने कहा, “महता, क्या मन्त्रणा-सभा बुलाई जाय।" महता ने कहा, “महाराज, इन विषयों को प्रकाश में लाना ठीक न होगा। आनन्द के सम्बन्ध में जब तक यह न ज्ञात हो जाए कि वह कहाँ है, कोई कदम आगे बढ़ाना हितकर न होगा। इस सम्बन्ध में अपनी गुप्त कार्रवाई जारी रखूगा। आवश्यकता होगी तो प्रच्छन्न रूप से अमीर की छावनी में भी जाऊँगा। उसकी गतिविधि समझनी होगी। तथा अमीर के आक्रमण से विरत होने का कारण क्या है, इसका पता लगाना होगा। उसके बाद यदि आवश्यक हुआ तो फिर मन्त्रणा-सभा बुला ली जाएगी।" परन्तु महता का सारा ही चातुर्य बेकार गया। धूर्त रुद्रभद्र और उसके चरों को ज्योंही इस बात का पता लग गया कि उनका मन्त्र फूट गया है, तथा उन पर दृष्टि रक्खी जा रही है, तो वे भी चौकन्ने और सावधान हो गए। इसी प्रकार और तीन दिन व्यतीत हो गए। कहाँ क्या हो रहा है, इस बात का मर्म कोई न जान सका।
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