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नहीं है। अब उसके मस्तिष्क में दो विचार आए, एक यह कि वह उसी मार्ग से जल्द-से-जल्द कोट में लौट जाए, महता को सूचना दे दे और इस मार्ग पर चौकी-पहरा रखवा दे; दूसरा यह कि थोड़ा और साहस करके अमीर की गतिविधि का अनुसंधान करे। बहुत सोच-विचार कर उसने अमीर की छावनी की ओर रुख किया। परन्तु इसी समय तुर्क सवारों ने उसे घेर लिया। आनन्द ने हौसला बनाए रखा। उसने तलवार म्यान में रख ली और कहा, “मैं शत्रु नहीं, मित्र हूँ, मुझे सुलतान नामदार की सेवा में ले चलो।" तुर्क सवार उसे बाँधकर छावनी में ले गए।