कर दिया था। तथा बलपूर्वक यह व्यवस्था कर दी थी कि चौला पिता से मिलने न पाए। परन्तु उस अर्ध निशा में कोट का निरीक्षण करते हुए उन्होंने एक छाया-मूर्ति को अपनी ओर आते देखा। उन्होंने नंगी तलवार हाथ में ली। निकट आने पर पहचाना, वह रुद्रभद्र है। कमर में केवल एक रक्ताम्बर है। शरीर नंग-धडंग। भयंकर जटाजूट के नीचे आग के अँगारे के समान जलते नेत्र हैं। भस्म-भूषित विशाल कृष्ण काय है। विकराल दाढ़ी में संपुटित मोटे-मोटे काले होंठ हैं। कण्ठ, भुजा और कमर में रुद्राक्ष हैं। हाथ में एक भारी चीमटा है। उस भीमकाय कृष्णवर्ण भयानक आकृति को देखकर दद्दा चौलुक्य का खून सूख गया। जैसे साक्षात् काल भैरव ही उनके सम्मुख आ खड़ा हुआ। उन्होंने हाथ की तलवार पृथ्वी पर फेंक दी और भूमि पर गिरकर साष्टांग दण्डवत् किया। वज्रगर्जन की भाँति एक शब्द उनके कान में पड़ा, “उठ चौलुक्य!" दद्दा खड़े होकर काँपने लगे, वे बद्धांजलि चुपचाप खड़े रहे। अपनी बड़ी-बड़ी घनी काली भौंहों पर जलती हुई दृष्टि को स्थिर करके रुद्रभद्र ने एक उँगली उठा कर कहा, “इस बार आशीर्वाद नहीं दूंगा। विनाश दूंगा।” दद्दा थर-थर काँपने लगे। रुद्रभद्र ने अट्टहास करके कहा, “अरे धार्मद्रोही, नहीं जानता, विनाश आ रहा है, सावधान हो जा। यहाँ रोने के लिए कुत्ते और स्यार आ रहे हैं।” उसने अपना विकराल चीमटा हवा में घुमाया और आकाश की ओर देखकर कहा, “ला विनाश, ला विनाश!" आसपास के सैनिक सहम कर पीछे हट गए। रुद्रभद्र ने वज्रगर्जन करके कहा, "त्रिपुरसुन्दरी का निर्माल्य भ्रष्ट हुआ।" चौलुक्य होंठ हिलाकर रह गए। रुद्रभद्र ने फिर हवा में चीमटा ऊँचा करके कहा, "ला विनाश, ला विनाश!” उसने ऐसी मुद्रा बनाई जैसे भगवान् रुद्र ही प्रलय का ताण्डव नृत्य कर रहे हों। दद्दा ने कॉपते- काँपते कहा, “रक्षा करो, प्रभु, रक्षा करो!" परन्तु रुद्रभद्र का उन्माद कम नहीं हुआ, उसने अग्निमय नेत्रों से घूरते हुए कहा, "नहीं, नहीं, यह दासपुरी भस्म होगी। महाकाल का कोप है।” फिर कुछ ठहरकर कहा, "आ मेरे साथ...” इतना कह वह द्वारिका-द्वार की ओर बढ़ा। पर दद्दा चौलुक्य पत्थर की मूर्ति की भाँति वहीं खड़े रहे। रुद्रभद्र ने पीछे घूमकर कहा, “आदेश सुना नहीं रे?" “प्रभु, यहाँ मेरी चौकी है।" “पर यह देवता की आज्ञा है।" "देवता की क्या आज्ञा है?" "मेरे साथ आ”, रुद्रभद्र ने वज्र-गर्जना की। पर दद्दा फिर भी उसी भाँति निस्पन्द खड़े रहे। रुद्रभद्र ने चीमटा हवा में ऊँचा करके कहा, “पातकी, तू देवाज्ञा को स्वीकार नहीं करता। तो मेरा दिया पुत्र फेर दे। महाकाल अभी उसका भक्षण करेंगे। ला दे।" उसने उसी क्षण पृथ्वी में पद्मासन से बैठ सिन्दूर से भैरवी चक्र रचा और अघोर मन्त्रों का उच्चारण कर फट-फट करने लगा। दद्दा ने कहा, “प्रभु, रक्षा करो, मेरा एक ही पुत्र है।" “वह मैंने तुझे दिया था रे। अब मैं उसे लूँगा।” उसने जल्दी-जल्दी मन्त्रोच्चारण 66
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