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66 60 "बापू, महाराज को सूचना देनी होगी।" “उन्हें क्या इस समय कष्ट देना ठीक होगा? यह क्या हमारे बूते के बाहर की बात है?" इसी समय भोला ने आकर मुजरा किया। राव ने कहा, “भाया, मुझे तेरी अभी आवश्यकता है।" "तो अन्नदाता, यह दास हाज़िर है।" "तू साहस करेगा?" "क्यों नहीं अन्नदाता।” राव ने इधर-उधर देखकर कहा, "रस्से?" सैनिक ने कहा, “ये हैं।" “इन्हें कोट से नीचे लटका दो।" फिर पलटकर भोला से कहा, "भाया, दुश्मन वहाँ बेड़ा बना रहे हैं, वहाँ उस आम की अमराई की ओर देख।" "देख चुका हूँ बापू।” “तो जाकर मेरे वीरदेव को सावधान कर दे। ऐसा न हो, वह शत्रु के चंगुल में फँस जाए।" “मैं अभी चला महाराज।" उसने रस्से पर हाथ डाला। “परन्तु शब्द न हो, संकट के समय मुझे सूचना कैसे देगा?" "अन्नदाता मेरा संकेत तो पहचानते हैं।" "हाँ-हाँ वीर, वैसा ही कर, बन पड़े तो देख आ, बेड़े की रक्षा कैसे हो रही है।" भोला ने पानी में डुबकी लगाई। राव ने कुछ देर उसे देखा, फिर नायक की ओर मुड़कर कहा, “शत्रु गहरी चाल चल रहा है।" "कैसी बापू?" "देखते नहीं हो, वह बेड़ा!" नायक पूरी बात सुनने के लिए राव की ओर ताकता रहा। राव ने कहा, “सूर्योदय होते ही अमीर आक्रमण करेगा। आक्रमण के प्रारम्भ में ही वह इसे खाई में खींच लाएगा और कोट पर चढ़ने की चेष्टा की जाएगी।" “यह तो बड़ी भयानक विपत्ति है बापू।" “इसे दूर करना होगा, भाया।" "बापू, महाराज को सूचना देनी चाहिए।' “नहीं, यह हमारा काम है। तुम जितने तैराक इसी क्षण इकट्ठे कर सकते हो, उन्हें लेकर खाई के मुहाने पर मेरी प्रतीक्षा करो। परन्तु सावधान रहो। शत्रु को तुम्हारी हलचल का तनिक भी पता न लगने पाए।" नायक चला गया। राव ने देखा-धनुर्धर योद्धा दो-दो, चार-चार की संख्या में, दल- बादल की भाँति आ-आकर बुर्जियों पर, मोर्चों पर, ठीओं पर आसीन होते जा रहे हैं। राव आश्वस्त हुए। परन्तु इसी समय उन्हें ऐसा भास हुआ कि वह विराट बेड़ा हिला। उन्होंने आश्चर्य से देखा, वे नावें बिखर कर भिन्न-भिन्न दिशा में बह चलीं। राव को "