"उन्हें क्या सावधान नहीं किया जा सकता बापू?" "कैसे?" "संकेत से?" “मशाल से संकेत देना जोखिम का काम है।" "और यदि मैं संकेत-शब्द करूं तो? प्रवहण के नायक मेरा संकेत-स्वर पहचानते “ठीक नहीं है भाया, शत्रु का ध्यान उधर है भी या नहीं, कहा नहीं जा सकता। तेरे शब्द-संकेत से या मशाल के संकेत से शत्रु का उधर ध्यान जा सकता है।" “पर बापू, नौका को आने देना भी तो खतरे की बात है।" “यह तो है भाया, क्या तू भोला को पहचानता है?" "हां बापू।" "उसे इसी क्षण ला सकता है?" "देखता हूँ।" "तो जा, और तट की सारी मशालें बुझाता जा, पर तेरी परछाईं भी न दीखने पावे, हाँ।" योद्धा ने जवाब नहीं दिया। वह तेज़ी से एक ओर चल दिया। राव फिर उधर ही देखने लगे। उन्होंने दूसरे एक योद्धा को बुलाकर कहा, “भाया, तू कुछ रस्से जितनी जल्द हो सके, जुटा ले। दो-चार आदमी और संग ले। पर देख, आहट न हो और इधर की हलचल उधर शत्रु की दृष्टि में न पड़ जाए, तू पृथ्वी पर रेंगकर जा।" सैनिक ने तत्काल ही आज्ञा का पालन किया। इसी समय एक तट-प्रहरी ने आकर निवेदन किया, “महाराज, शत्रु चुपचाप नावों का एक बेड़ा बना रहे हैं।" राव ने व्याकुल होकर प्रहरी को देखा। पर उसने संयत स्वर में कहा, “कैसा बेड़ा भाया?" "उन्होंने सैकड़ों नावों को जोड़ कर एक भारी बेड़ा बना लिया है, और वे उसे खाई के मुहाने से कुछ हटकर छूटों से बाँध रहे हैं।" प्रहरी साँस रोककर राव का मुँह ताकने लगा। उन्होंने फिर कहा, “बापू, हमारे प्रवहण पड़े हैं, शत्रु कहीं उन पर संकट तो लाने की तैयारी नहीं कर रहा है?" किन्तु राव ने फिर भी कुछ उत्तर नहीं दिया। वे गहरे विचार में पड़ गए। “महाराज, कुछ योद्धा भी बाहर निकालिए।" "भाया, वे तो उन तरणियों के पास पहुँचने से पहले ही तीरों में बांध दिए जाएँगे।" सैनिक विचार में पड़कर राव का मुँह ताकने लगा। राव ने कहा, “भाया, तू अपनी जगह पर सावधान रह, और कोई नई बात हो तो मुझे कहना। परन्तु चुपचाप मेरे पास नायक को भेज दे।" सैनिक चला गया। और कुछ क्षण बाद नायक ने आकर राव को मुजरा किया। राव ने शत्रु की हलचल समझते हुए कहा, “देखा तुमने?" उधर
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